
प्रशांत कटियार
हम जिस दौर में जी रहे हैं, उसे सूचना क्रांति का युग कहा जाता है। सैकड़ों न्यूज चैनल, चौबीसों घंटे चलने वाली खबरें, सोशल मीडिया पर पल पल की अपडेट यह सब देखने में तो एक सशक्त लोकतंत्र की निशानी लगता है, लेकिन असलियत कुछ और है। आज की मीडिया गति के पीछे सच्चाई को छोड़ चुकी है। टीआरपी की होड़ ने उसे इतना अंधा बना दिया है कि तथ्य से पहले त्वरितता को प्राथमिकता दी जाने लगी है।ताजा उदाहरण है अभिनेता धर्मेंद्र के निधन की झूठी खबर। बीते दिनों कुछ प्रमुख मीडिया चैनलों और पोर्टलों ने बिना किसी आधिकारिक पुष्टि के यह अफवाह फैला दी कि दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र का निधन हो गया है। देखते ही देखते यह खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। आम लोग तो क्या, बड़े नेता भी इस अफवाह के झांसे में आ गए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट कर दिया, जिसे बाद में हटाना पड़ा।लेकिन बुधवार की सुबह धर्मेंद्र स्वयं अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर लौट आए, यह दृश्य जितना सुखद था, उतना ही शर्मनाक भी क्योंकि इसने हमारे मीडिया की पोल खोल दी।
यह केवल एक झूठी खबर नहीं थी, बल्कि पत्रकारिता की उस बीमार मानसिकता का आईना थी, जो अब पहले दिखाने की दौड़ में सही दिखाने को भूल चुकी है।
अब सोचिए जब ये चैनल एक इंसान के जीवित या मृत होने की पुष्टि तक नहीं कर पाते, तो क्या इनके एग्जिट पोल, चुनावी विश्लेषण, या आर्थिक रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है, बिल्कुल नहीं। जो मीडिया बिना पुष्टि के किसी की मौत ब्रेकिंग न्यूज बना दे, वह देश की नीतियों, राजनीति और भविष्य के अनुमानों पर कितना विश्वसनीय हो सकता है,आज की मीडिया ने खुद को मनोरंजन उद्योग बना लिया है। चैनलों पर खबर नहीं, नाटक चलता है। एंकर की आवाज़ ऊँची होती है, पर तर्क कमजोर। डिबेट्स में तथ्य नहीं, शोर होता है। और जनता, जिसे सच्चाई चाहिए, उसे मिलती है केवल भ्रम और उत्तेजना।मीडिया की यह स्थिति केवल एक गलती का परिणाम नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की विफलता है। जहां संपादक की जगह विज्ञापनदाता ने जगह ले ली है और पत्रकार की जगह प्रवक्ता ने। ऐसे में खबरें वस्तुनिष्ठ नहीं रह गईं वे एजेंडा आधारित हो गई हैं।
इसलिए अब वक्त आ गया है कि जनता हर ब्रेकिंग न्यूज पर नहीं, बल्कि सत्यापित तथ्य पर भरोसा करे।धर्मेंद्र की झूठी मौत की खबर ने हमें यही सिखाया है अब खबरों पर नहीं, तथ्यों पर विश्वास करना होगा।
एग्जिट पोल पर नहीं, अपने विवेक पर भरोसा करना होगा।क्योंकि धर्मेंद्र जीवित हैं, लेकिन पत्रकारिता की आत्मा वह सचमुच मर चुकी है।
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड है।






