यूथ इंडिया संवाददाता
कायमगंज। राष्ट्र धर्म और संस्कृति के अमर गायक ,आत्मा के सौंदर्य एवं स्वाभिमान के चितेरे राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता मानवीय चेतना को जगा कर तेजस्विता का संदेश देती है। राष्ट्रकवि दिनकर की जयंती पर राष्ट्रीय प्रगतिशील फोरम द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उक्त विचार व्यक्त करते हुए अध्यक्ष प्रोफेसर रामबाबू मिश्र रत्नेश ने कहा कि दिनकर का हर शब्द वैचारिक क्रांति का महामंत्र है। वे राष्ट्रीय पुनर्जागरण के अग्रदूत हैं ।संस्कृति के चार अध्याय ,उर्वशी ,कुरुक्षेत्र ,रश्मिरथी उनकी कालजयी रचनाएं हैं। संत गोपाल पाठक ने कहा कि जब राजनीति लडख़ड़ाती है तो साहित्य उसे थाम लेता है, क्या आज का साहित्य इस स्थिति में है? प्रधानाचार्य शिवकांत शुक्ला ने कहा कि दिनकर जी ने भगवान परशुराम को आधुनिक भारत का भाग्य विधाता बताया था । पूर्व प्रधानाचार्य अहिवरन सिंह गौर ने कहा कि कितने अफसोस की बात है कि दिनकर ,भूषण ,श्याम नारायण पांडे ,सुभद्रा कुमारी चौहान ,मैथिली शरण गुप्त जैसे राष्ट्र प्रेरक साहित्यकारों को पाठ्यक्रमों से बाहर कर दिया गया है। ऐसी दिशाहीन शिक्षा हमें कहां ले जा रही है ?गीतकार पवन बाथम ने कहा .. एक ओर दिनकर जी वीर रसऔर राष्ट्रभक्ति के कवि हैं तो वहीं दूसरी ओर उन्होंने उर्वशी खंडकाव्य में श्रृंगार रस की वर्षा की ।एक दोहे के माध्यम से अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा…
नई पीढिय़ों के लिए ,हैं आदर्श महान।
रहे बांटते तेज तप, होकर सूर्य समान ।।
युवा कवि अनुपम मिश्रा ने कहा..
दिनकर का साहित्य है तेजपुंज दिनमान।
शब्दों में वीरत्व का है प्रत्यक्ष प्रमाण।।
गोष्ठी में जेपी दुबे ,डॉक्टर सुनीत सिद्धार्थ और शिवकुमार दुबे ने भी अपने विचार व्यक्त किये।