जन्माष्टमी का संदेश: कर्म, प्रेम और नीति
– आज के समाज में श्रीकृष्ण का प्रासंगिक दर्शन
– “काशी रत्न” अजय कुमार
वरिष्ठ संपादक
– जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण का अवसर
भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) का जीवन केवल एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि नीति, न्याय, करुणा और कर्तव्य का जीवंत उदाहरण है। आज के समाज में जब नैतिक मूल्यों का क्षरण देखा जा रहा है, तब श्रीकृष्ण का गीता में दिया गया उपदेश (Sermon) और उनका व्यवहार हमें एक नई दिशा दे सकता है। कर्म को प्रधानता देने की उनकी शिक्षा, बिना फल की चिंता किए कार्य करते रहने का संदेश आज की भागदौड़ भरी और परिणाम-केंद्रित दुनिया में अत्यंत प्रासंगिक है। गीता का यह उपदेश कि “कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो”, आधुनिक युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा बन सकता है।
आज जब समाज में स्वार्थ, असहिष्णुता और भ्रम का माहौल है, श्रीकृष्ण का जीवन हमें यह सिखाता है कि कैसे धैर्य, बुद्धिमत्ता और प्रेम से इन परिस्थितियों से पार पाया जा सकता है। कृष्ण का मित्र रूप, जिन्होंने सुदामा की गरीबी में भी उन्हें सम्मान और अपनापन दिया, आज के समय में टूटते संबंधों को संबल देने वाला आदर्श है। उनका सारथी रूप, जहां उन्होंने अर्जुन को मोह और भ्रम से निकालकर कर्तव्य के मार्ग पर स्थापित किया, आज के युवा वर्ग के लिए मार्गदर्शन का प्रतीक बन सकता है।
Janmashtami भारत का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में पूरे देश में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को आता है और रात के समय श्रीकृष्ण जन्म की मान्यता के अनुसार उत्सव आयोजित किए जाते हैं। देशभर में मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है, झांकियां निकलती हैं, दही-हांडी प्रतियोगिताएं होती हैं और व्रत-पूजन का आयोजन होता है। लेकिन इस पर्व का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज, आचरण और जीवन दृष्टिकोण से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण का अवसर है। यह दिन हमें यह सोचने पर विवश करता है कि क्या हम केवल परंपरा का पालन कर रहे हैं या फिर वास्तव में श्रीकृष्ण के सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास कर रहे हैं। श्रीकृष्ण का जीवन संघर्ष से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया, कभी अपने लक्ष्य से विचलित नहीं हुए। वह प्रेम, न्याय, साहस और नीति के प्रतीक हैं।
आज जब हमारा समाज अनेक सामाजिक और वैचारिक चुनौतियों से जूझ रहा है, तब कृष्ण का विचार और उनका जीवनदर्शन हमारे लिए समाधान प्रस्तुत करता है। जन्माष्टमी के इस पर्व पर यह जरूरी है कि हम दीप तो जलाएं, झांकियां तो सजाएं, लेकिन उनके विचारों को भी अपने भीतर स्थान दें। यही श्रीकृष्ण के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धा होगी और यही इस पर्व का वास्तविक संदेश भी।