नई दिल्ली: देशभर में जन्माष्टमी (Janmashtami) की धूम (celebrate), मंदिरों में उमड़ी भक्तों की भीड़। मथुरा के बांके बिहारी मंदिर में भक्तों का सैलाब, मंदिरों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम। जन्माष्टमी सिर्फ़ भगवान कृष्ण के जन्म को याद करने के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी कहानियों को फिर से जीने, उनकी शरारतों का जश्न मनाने और घरों को भक्ति, हँसी और प्रेम से भरने के बारे में है। 2025 में, यह त्यौहार पहले की तरह ही जीवंत रहने का वादा करता है। यहाँ आपको इसके बारे में सब कुछ जानने की ज़रूरत है।
जन्माष्टमी शनिवार, 16 अगस्त को धूमधाम से मनाई जा रही है और पूरे भारत में राजपत्रित सार्वजनिक अवकाश है। अष्टमी तिथि 15 अगस्त को देर से शुरू होकर 16 अगस्त तक रहेगी, जिससे यह लाखों लोगों के लिए भक्ति की रात बन जाएगी। रात्रि समय: 12:03 पूर्वाह्न – 12:47 पूर्वाह्न पूर्वाह्न श्री कृष्ण का जनमोत्स्व मनाया जायेगा। अवधि: लगभग 43 मिनट — कृष्ण का आपके घर और हृदय में स्वागत करने का सबसे पवित्र समय।
छोटे-छोटे गाँवों के मंदिरों से लेकर शहर की चहल-पहल भरी गलियों तक, जन्माष्टमी एक रंगीन तमाशा है। भक्त अक्सर दिन भर उपवास रखते हैं, कुछ बिना पानी पिए, तो कुछ फल और दूध पर निर्वाह करते हैं, और कृष्ण के दिव्य जन्म के क्षण, मध्यरात्रि की आरती के बाद ही उपवास तोड़ते हैं।
लड्डू गोपाल की मूर्तियों को सुंदर ढंग से सजाए गए झूलों पर रखा जाता है। परिवार मध्यरात्रि में उन्हें धीरे से झुलाते हैं, फूल, मिठाइयाँ और तुलसी के पत्ते चढ़ाते हैं। रात भर भजनों व कृष्ण के जीवन के नाटकीय प्रदर्शनों (रासलीला) और भागवत पुराण के पाठों से गूंजती है।
चढ़ाएं ये भोग
माखन-मिश्री – भगवान कृष्ण को माखन बहुत प्रिय है। इसलिए उन्हें माखन और मिश्री का भोग जरूर लगाएं।
धनिया पंजीरी – यह जन्माष्टमी का एक पारंपरिक भोग है, जिसे चढ़ाने से जीवन में शुभता का आगमन होता है। साथ ही कान्हा खुश होते हैं।
खीर – इस दिन खीर भी भगवान कृष्ण को अर्पित की जाती है।
पीले फल – इस दिन मौसमी फल जैसे – केले, सेब और अंगूर का भोग भी लगाया जाता है।