फर्रुखाबाद: सरकारें भले ही पढ़ाई लिखाई (study writing) करके बच्चों को आगे बढ़ने का कितना भी प्रयास करती रहे लेकिन बाल श्रम समाज का पीछा नहीं छोड़ रहा है इसके लिए सिर्फ सरकारी ही नहीं नागरिकों का जागरूक होना भी आवश्यक है क्योंकि जब तक आम लोग अपने बच्चों को पढ़ाने का संकल्प नहीं लेंगे तब तक बाल श्रम समाज का पीछा नहीं छोड़ेगा। नगर में अभी छोटे-छोटे बच्चे पूरा बनते बिनते दिखाई देते हैं जिससे लगता है कि देश का भविष्य पूरे के ढेर पर अपना कर रहा है।
तमाम प्रयास हुए की बाल श्रम जैसी कुरीति को समाप्त किया जा सके लेकिन वह सारे प्रयास सफल जाते दिखाई दे रहे हैं हां इतना अवश्य हुआ कि लोगों में कुछ तो जागरूकता ही है लेकिन आर्थिक स्थितियों से जूझ रहे लोअर क्लास के लोग बच्चों से श्रम करने में अभी गुरेज नहीं बरत रहे हैं। कुछ आर्थिक स्थिति ऐसी है जिससे बच्चों से कार्य कर कर घर के खर्च चल पाते हैं कुछ कुरीतियां ऐसी हैं जिनमें बड़े तो नशा जुआ इत्यादि के चक्कर में पड़कर घर के बाद लापरवाह हो जाते हैं ऐसे में घर की महिलाओं और बच्चों को पेट पालने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है।
भारतीय समाज की है विडंबना कब समाप्त होगी कहां नहीं जा सकता लेकिन इतना अवश्य है कि कूड़े के ढेर पर अपना भविष्य तलाश था बचपन विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे हैं भारत की हकीकत को बयां करने के लिए काफी है। आम स्थान पर रेलवे स्टेशन बस अड्डा मुख्य चौराहा उन स्थानों पर जहां कूड़ा इकट्ठा रहता है वहां पर बच्चे कंधे पर पॉलिथीन टांगे पूरा बिनते अक्सर दिखाई दे जाते हैं तो संवेदनशील जीवन्त होता है।