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Saturday, June 21, 2025

भारतीय अधिवक्ता भुवन ऋभु को वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन ने ‘मेडल ऑफ ऑनर’ से किया सम्मानित

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देहरादून: भारत के प्रख्यात अधिवक्ता (Indian advocate) और बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु को वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन (World Jurist Association) ने वर्ल्ड लॉ कांग्रेस में ‘मेडल ऑफ ऑनर’ से सम्मानित किया है। वे इस प्रतिष्ठित सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले भारतीय अधिवक्ता बन गए हैं। यह पुरस्कार उन्हें बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु दो दशक से किए जा रहे कानूनी संघर्षों और जमीनी प्रयासों के लिए प्रदान किया गया।

4 से 6 मई तक डोमिनिकन रिपब्लिक में आयोजित इस वर्ल्ड लॉ कांग्रेस में 70 देशों के 1500 से अधिक कानूनी विशेषज्ञ और 300 वक्ताओं ने भाग लिया। इस अवसर पर श्रम मंत्री एडी ओलिवारेज ऑर्तेगा, महिला विभाग मंत्री मायरा जिमेनेज और डब्ल्यूजेए के अध्यक्ष जेवियर क्रेमाडेस मौजूद रहे।

भुवन ऋभु ने सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों में अब तक 60 से अधिक जनहित याचिकाएं दायर की हैं, जिनके आधार पर बाल विवाह, बाल यौन शोषण, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, ट्रैफिकिंग और गुमशुदा बच्चों जैसे मुद्दों पर ऐतिहासिक फैसले आए हैं। वर्ष 2011 में ट्रैफिकिंग को संयुक्त राष्ट्र प्रोटोकॉल के अनुरूप परिभाषित करने और 2013 में गुमशुदा बच्चों के लिए प्रभावी दिशा-निर्देश जारी करने का श्रेय भी उनकी याचिकाओं को जाता है।

भुवन ऋभु ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ (JRC) नामक वैश्विक नेटवर्क के संस्थापक हैं, जो दुनिया भर में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए कानूनी हस्तक्षेप करता है। उत्तराखंड में JRC के सहयोग से विभिन्न जिलों में बाल विवाह उन्मूलन व बाल अधिकार संरक्षण पर सक्रिय अभियान चलाए जा रहे हैं। पुरस्कार ग्रहण करते हुए भुवन ऋभु ने कहा, “न्याय की लड़ाई में बच्चों को कभी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। कानून उनकी ढाल और न्याय उनका अधिकार होना चाहिए।”

डब्ल्यूजेए के अध्यक्ष जेवियर क्रेमाडेस ने उनकी सराहना करते हुए कहा, “भुवन ऋभु ने अपना जीवन बच्चों और यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए समर्पित कर दिया है। उनके प्रयासों से भारत में ही नहीं, वैश्विक स्तर पर भी कानूनी ढांचा मजबूत हुआ है।” बाल विवाह पर उनकी चर्चित पुस्तक ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन’ को सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में अपने दिशानिर्देशों में एक व्यापक मार्गदर्शिका के रूप में स्वीकार किया। उनके सतत प्रयासों से भारत 2030 तक बाल विवाह की कुप्रथा को समाप्त करने की दिशा में निर्णायक प्रगति कर रहा है।

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