शरद कटियार
भारतीय उपमहाद्वीप के दो प्रमुख देशों – भारत और पाकिस्तान (India-Pakistan) – के बीच दशकों से चली आ रही शत्रुता, अविश्वास और हिंसक संघर्षों के बीच एक बार फिर शांति की किरण फूटी है। शनिवार, 10 मई 2025 को, भारत और पाकिस्तान ने आपसी सहमति से युद्धविराम (Ceasefire) की घोषणा की है, जो उसी दिन शाम 5 बजे से प्रभाव में आ गई। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने इस ऐतिहासिक निर्णय की पुष्टि की और वैश्विक मंचों पर इसे सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। विशेषकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald trump) ने इस पहल का खुले दिल से स्वागत करते हुए दोनों देशों को बधाई दी।
भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) पर लगातार होने वाली गोलीबारी और उसके दुष्परिणामों के संदर्भ में यह समझौता एक महत्वपूर्ण मोड़ है। रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024 में 1,420 युद्धविराम उल्लंघन की घटनाएं हुई थीं, जिनमें 35 आम नागरिकों और 27 भारतीय सैनिकों की जान चली गई थी, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। ऐसे में युद्धविराम की यह घोषणा न केवल कूटनीतिक परिपक्वता का संकेत है, बल्कि मानवता के हित में उठाया गया सराहनीय कदम भी है।
इस युद्धविराम का घोषित होना जितना सरल प्रतीत होता है, उससे कहीं अधिक जटिल इसकी पृष्ठभूमि रही है। दोनों देशों के बीच वर्ष 1947 से अब तक चार बड़े युद्ध हो चुके हैं और अनगिनत सीमाई झड़पें हुई हैं। 1999 का कारगिल युद्ध तो विश्व के सबसे कठिन युद्धक्षेत्रों में से एक पर लड़ा गया था। वहीं, 2008 के मुंबई हमले के बाद भारत की जनता के भीतर पाकिस्तान को लेकर अविश्वास की भावना और गहराई थी। पिछले एक दशक में पुलवामा हमला, बालाकोट स्ट्राइक, और अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद दोनों देशों के बीच संवाद लगभग पूरी तरह बंद हो गया था। ऐसे में यह युद्धविराम एक आश्चर्यजनक परंतु स्वागतयोग्य घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है।
विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने स्पष्ट किया कि यह युद्धविराम केवल घोषणा मात्र नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक सुव्यवस्थित योजना और निगरानी प्रणाली भी तैयार की जा रही है। एक संयुक्त निगरानी तंत्र (Joint Monitoring Mechanism) की स्थापना की जा रही है, जिसमें दोनों देशों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह तंत्र युद्धविराम के किसी भी उल्लंघन की तत्काल जांच करेगा और आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित करेगा। इस प्रणाली का उद्देश्य केवल नियंत्रण रेखा पर शांति स्थापित करना नहीं है, बल्कि विश्वास बहाली की दिशा में भी यह एक ठोस कदम है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बयान में इस फैसले को “शांति की दिशा में ऐतिहासिक पहल” बताया। उन्होंने कहा कि अमेरिका इस प्रयास में भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ खड़ा है और उम्मीद करता है कि यह कदम क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक प्रगति की नींव रखेगा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव, रूस, फ्रांस और यूरोपीय संघ ने भी इस पहल का समर्थन किया है। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशिया की शांति को प्राथमिकता दी जा रही है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या यह युद्धविराम स्थायी साबित हो पाएगा? इतिहास इस मामले में थोड़ी निराशा देता है। 2003 में भी दोनों देशों ने युद्धविराम का समझौता किया था, जो कुछ वर्षों तक प्रभावी रहा लेकिन धीरे-धीरे उसकी मूल भावना क्षीण हो गई। आतंकी गतिविधियों और सीमाई घटनाओं ने उस समझौते को लगभग अप्रासंगिक बना दिया।
लेकिन 2025 की यह परिस्थिति अलग है। अब दोनों देशों को आर्थिक विकास, वैश्विक प्रतिस्पर्धा, जलवायु परिवर्तन और आंतरिक सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार संकट में है, वहीं भारत भी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होते हुए स्थायित्व की खोज में है। ऐसे में दोनों के लिए एक स्थायी और सकारात्मक पड़ोसी संबंध समय की आवश्यकता है।
इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि सीमाई इलाकों में रहने वाले नागरिकों को इस युद्धविराम से सबसे अधिक राहत मिलेगी। बार-बार की गोलीबारी, विस्थापन, जानमाल की हानि और मानसिक तनाव से जूझ रहे इन लोगों के लिए यह एक प्रकार की राहत की सांस है। स्थानीय स्कूल, अस्पताल और बाजार अब पहले की तरह सामान्य संचालन कर सकेंगे, जिससे जीवन स्तर में सुधार आने की उम्मीद है।
इसके साथ ही इस निर्णय के प्रभावों को भारत की सुरक्षा नीति, रक्षा खर्च, और सैन्य रणनीति के दृष्टिकोण से भी देखा जाना चाहिए। अगर यह युद्धविराम स्थायी रूप से लागू होता है, तो भारत अपने संसाधनों को सीमाओं की बजाय आंतरिक विकास और नई वैश्विक चुनौतियों से निपटने में लगा सकेगा। साथ ही पाकिस्तान की सेना और सरकार के बीच तालमेल तथा उनकी घरेलू राजनीति पर भी इसका व्यापक असर पड़ेगा।
इसके बावजूद, कुछ आशंकाएं बनी रहेंगी। क्या पाकिस्तान की जमीन से संचालित आतंकवादी संगठन इस युद्धविराम का उल्लंघन करेंगे? क्या वहां की सेना और आईएसआई इस समझौते को ईमानदारी से लागू करेंगे? यह सभी प्रश्न भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन भारत सरकार और विदेश नीति निर्माताओं को इन संभावनाओं के लिए तैयार रहना होगा।
भारत को अब सतर्कता और सजगता के साथ आगे बढ़ते हुए कूटनीति को मजबूत करना होगा। पाकिस्तान के साथ सीमित स्तर पर संवाद बहाल करना, ट्रैक-2 डिप्लोमेसी को सक्रिय करना, और व्यापार तथा सांस्कृतिक संबंधों को धीरे-धीरे पुनर्स्थापित करना आवश्यक होगा। साथ ही भारत को अपनी सुरक्षा व्यवस्था में कोई ढील नहीं देनी चाहिए और युद्धविराम के पालन की कड़ी निगरानी रखनी चाहिए।
यह युद्धविराम जहां एक ओर राजनीतिक और कूटनीतिक सफलता है, वहीं दूसरी ओर यह मानवता की विजय भी है। जब दोनों देशों की सीमाओं पर शांति होगी, तो न केवल सैनिकों को बल्कि उनके परिवारों को भी मानसिक संतुलन और स्थिरता मिलेगी। दोनों देशों की जनता युद्ध से नहीं, बल्कि रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास से जुड़ी नीतियों से प्रभावित होती है।
अंततः यही कहा जा सकता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच यह युद्धविराम महज़ एक समझौता नहीं, बल्कि संभावनाओं का द्वार है। यह एक ऐसा क्षण है जिसमें इतिहास की तलवारें शांति के संकल्प में बदल सकती हैं।
अब आवश्यकता है कि दोनों देश इस क्षण को पहचानें, संजोएं और एक शांतिपूर्ण उपमहाद्वीप की दिशा में आगे बढ़ें। शांति केवल गोलीबारी रोकने से नहीं आती, वह तब आती है जब दिलों में भरोसा और संवाद की राहें खुलती हैं। यही युद्धविराम की सबसे बड़ी सफलता होगी।
जय हिंद!
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के मुख्य संपादक हैं।
शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप