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Friday, June 6, 2025

अदृश्य जैविक हथियारों से हमला के खतरे से भारत को चौकन्ना रहने की जरूरत

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शरद कटियार

आधुनिक विज्ञान की प्रगति जहां एक ओर मानव जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य कर रही है, वहीं दूसरी ओर यह कुछ शक्तियों के हाथों में खतरनाक हथियार भी सौंप रही है। इनमें सबसे घातक और अदृश्य हथियारों में से एक है—जैविक हथियार (Biological Weapons)। यह ऐसे हथियार होते हैं, जो किसी पारंपरिक विस्फोटक की तरह आंखों से नहीं दिखते, लेकिन उनके प्रभाव कहीं अधिक व्यापक, घातक और दीर्घकालिक हो सकते हैं।

हाल ही में अमेरिका में सामने आए चीनी वैज्ञानिकों द्वारा जैविक फफूंद की तस्करी के मामले ने एक बार फिर वैश्विक समुदाय को चेताया है कि जैविक हथियार अब किसी काल्पनिक या भविष्य की कहानी का हिस्सा नहीं, बल्कि आज की हकीकत बन चुके हैं। इस संदर्भ में भारत जैसी कृषि प्रधान और जनसंख्या घनत्व वाले देश के लिए यह खतरा और भी अधिक गंभीर हो जाता है।

जैविक हथियारों की सबसे खतरनाक बात यह है कि ये परंपरागत हथियारों की तरह सीमाओं का सम्मान नहीं करते। इनसे फैलने वाले रोग, विष या फफूंद किसी राष्ट्र की सीमाओं में कैद नहीं रहते और कुछ ही समय में वैश्विक महामारी में तब्दील हो सकते हैं। इनका इस्तेमाल दुश्मन देशों की खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था और आर्थिक ढांचे को ध्वस्त करने के लिए किया जा सकता है।

बैक्टीरिया, वायरस, फफूंद और उनके विषाक्त पदार्थ – ये सभी जैविक हथियारों के प्रमुख घटक हैं। किसी भी रूप में, यह मानव, पशु और पौधों को संक्रमित करने और तबाही मचाने में सक्षम होते हैं। 21वीं सदी के इस दौर में, जहां महामारी (COVID-19) जैसी आपदाओं ने मानवता को बुरी तरह झकझोरा है, वहीं जैविक हथियारों का इस्तेमाल भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है।

2024 में अमेरिका में सामने आए एक मामले ने दुनिया को इस खतरे की गंभीरता का अहसास कराया। चीनी वैज्ञानिक युनकिंग जियान और ज़ुनयोंग लियू पर आरोप है कि उन्होंने फ्यूजेरियम ग्रामिनेरियम नामक एक खतरनाक फफूंद अमेरिका में अवैध रूप से लाने की कोशिश की। इस फफूंद को गेहूं, मक्का और जौ जैसी अनाज वाली फसलों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है।

लियू को डेट्रॉइट मेट्रोपॉलिटन हवाई अड्डे पर जुलाई 2024 में उस समय गिरफ्तार किया गया जब उनके बैग से यह जैविक सामग्री मिली। प्रारंभ में उन्होंने इसकी जानकारी से इनकार किया, लेकिन बाद में स्वीकार किया कि ये नमूने उन्होंने अनुसंधान के लिए लाए थे। अमेरिकी जांच एजेंसियों की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि जियान और लियू ने पूर्व में जैविक सामग्री की तस्करी पर बातचीत की थी।

यह मामला केवल अमेरिका का ही नहीं है। यह वैश्विक जैव सुरक्षा तंत्र के लिए एक गंभीर सवाल है कि अगर विकसित देश जैसे अमेरिका तक में इस प्रकार की घुसपैठ हो सकती है, तो विकासशील देश कितने असुरक्षित हैं?

फ्यूजेरियम ग्रामिनेरियम को वैज्ञानिक रूप से एक पौध रोगजनक फफूंद माना जाता है, लेकिन इसके प्रभाव किसी भी हथियार से कम नहीं हैं। यह फफूंद संक्रमित अनाज में डिऑक्सिनीवालेनोल (DON) नामक मायकोटॉक्सिन उत्पन्न करता है, जो इंसानों, पशुओं और पौधों—तीनों के लिए हानिकारक है।

इसके प्रमुख दुष्प्रभाव हैं जैसे गेहूं, मक्का जैसे प्रमुख अनाज काले और सड़नयुक्त हो जाते हैं, जिससे उपज में भारी गिरावट आती है।इस फफूंद से उत्पन्न विष के कारण मनुष्यों में उल्टी, दस्त, लिवर क्षति, और प्रजनन समस्याएं देखी जाती हैं।संक्रमित चारे के सेवन से पशुओं की बीमारियाँ बढ़ जाती हैं, जिससे दूध उत्पादन और पशु-पालन व्यवसाय पर प्रभाव पड़ता है। जब प्रमुख खाद्यान्न ही संक्रमित हो जाएं, तो पूरा खाद्य तंत्र अस्थिर हो जाता है। इससे मंहगाई, भूख और सामाजिक असंतोष जैसे मुद्दे जन्म ले सकते हैं।

भारत दुनिया के सबसे बड़े कृषि आधारित अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यहां की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। गेहूं, मक्का और जौ जैसी फसलें भारत की खाद्य सुरक्षा का मूल आधार हैं। यदि इस प्रकार का जैविक फफूंद भारत में किसी “जैविक युद्ध” के रूप में पहुंचता है, तो उसके परिणाम कल्पना से परे हो सकते हैं। कृषि उत्पादन में भारी गिरावट से किसानों की आत्महत्या की दरें बढ़ सकती हैं।कृषि क्षेत्र पर प्रभाव से ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है, जिससे बेरोजगारी और पलायन बढ़ेगा। यदि यह फफूंद मनुष्यों में भी फैले, तो पहले से ही बोझिल स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा सकती है।जब खाद्यान्न की कमी और स्वास्थ्य संकट एक साथ खड़े हों, तो देश की आंतरिक शांति और कानून व्यवस्था भी खतरे में पड़ सकती है।

जैविक हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए Biological Weapons Convention (BWC) जैसी अंतरराष्ट्रीय संधियाँ पहले से मौजूद हैं, लेकिन इनका पालन और निगरानी बेहद कमजोर है। चीन, उत्तर कोरिया और कुछ अन्य राष्ट्रों पर जैविक हथियारों के गुप्त अनुसंधान के आरोप पहले भी लगते रहे हैं।

अमेरिकी खुफिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि चीन जैविक हथियारों के रूप में समुद्री विषाक्त पदार्थों (Marine Toxins) पर भी काम कर रहा है। इससे जैव युद्ध की संभावनाएं और भी व्यापक हो जाती हैं।

भारत को तत्काल प्रभाव से एक समग्र National Biosecurity Policy बनानी चाहिए, जिसमें जैविक खतरे से निपटने की स्पष्ट कार्ययोजना हो।एयरपोर्ट, सीपोर्ट, और सीमा चौकियों पर जैविक सामग्री की तस्करी को रोकने के लिए हाई-टेक जांच उपकरणों की व्यवस्था होनी चाहिए।कृषि वैज्ञानिकों और चिकित्सा विशेषज्ञों को मिलाकर सक्रिय अनुसंधान केंद्र बनाना चाहिए, जो जैविक खतरे की निगरानी करें और त्वरित प्रतिक्रिया दें।

भारत को संयुक्त राष्ट्र, WHO और अन्य वैश्विक संस्थाओं के साथ मिलकर जैविक हथियारों के वैश्विक नियमन पर ठोस कदम उठाने चाहिए। किसानों को इन फफूंदों की पहचान और प्राथमिक उपायों की जानकारी देना बेहद आवश्यक है, ताकि समय रहते बचाव हो सके।

जैविक हथियार आधुनिक समय की सबसे बड़ी अदृश्य चुनौती बनकर उभर रहे हैं। ये किसी मिसाइल या बम से नहीं, बल्कि एक बीज, एक बैक्टीरिया या एक फफूंद से शुरू होते हैं, लेकिन इनके परिणाम वर्षों तक मानवता को झकझोरते रहते हैं।

भारत को इस खतरे को केवल विदेशों में घटित घटनाओं तक सीमित न समझकर, स्वदेशी जैव सुरक्षा रणनीति पर काम शुरू करना होगा। जैविक युद्ध भविष्य में नहीं, बल्कि आज ही शुरू हो चुका है — और इस युद्ध की जीत तभी संभव है जब हम विज्ञान, सुरक्षा और जन-जागरूकता को एक साथ मिलाकर चलें।

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