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Friday, May 9, 2025

बढ़ते अत्याचार टूटते परिवार, कौन जिम्मेदार?

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अंजनी सक्सेना

प्रकृति ने स्त्री और पुरुष के अत्यंत संतुलित,संयमित व सर्वोत्तम संयोग से इस सृष्टि की संरचना की लेकिन दुर्भाग्यवश आज यह संयोग हमारे ही देश में अति असंतुलित हो चुका है। कभी सुप्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त की उक्ति “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी” को वेदवाक्य की तरह मान्यता मिली हुई थी। पर आज स्थिति पूर्णतया बदल चुकी है, अब हमारे देश में पुरुषों की स्थिति अत्यंत दयनीय है और नारी अबला नहीं सबला बन चुकी है। आज की महिला धरती को हिलाने वाली और पत्नी हर समय पति पर हावी रहने वाली छवि धारण कर चुकी है। अब वह प्राचीन नारी की भांति पति को परमेश्वर नहीं मानती। अब वह पति को मात्र पदार्थ समझने लगी हैं। (यह बात अशिक्षित या अति शिक्षित नारियों के बारे में भले ही अपवाद सिद्ध हो।) पुरुष की दयनीयता की पटकथा का लेखन यद्यपि 15-20 वर्ष पूर्व ही शुरू हो गया था। पर इधर 5-6 वर्षों से महिलाओं ने पुरुषों की अच्छी दुर्गति की है। भारतीय संविधान ने भी सारे नियम कानून महिलाओं के पक्ष में बनाकर उन्हें पुरुषों का शोषण करने के लिये छुट्टा छोड़ दिया है। इसके परिणामस्वरूप आज अधिकतर परिवार (Families) टूटे फूटे नजर आ रहे हैं।

कभी अमरीका, इंग्लैण्ड, फ्रांस और इटली जैसे पाश्चात्य देशों की महिलाओं को फैशन परस्त और आधुनिक माना जाता था। पर बीते कुछ वर्षों में इन मामलों में भारतीय नारी ने पाश्चात्य नारी को भी पीछे छोड़ दिया है। हमारे देश में जब तक नारी भारतीय दर्शन से संबद्ध रही, वह संयमित एवं सन्नारी बनी रही। तब तक वह पति को अपमानित करने की कल्पना को भी पाप मानती थी। पर अब पश्चिम की भोगवादी एवं बाजारवादी विचारधारा का प्रबल प्रभाव यहां भी दिखाई दे रहा है। फलस्वरूप भारतीय दंपत्तियों में आये दिन कलह और क्लेश हो रहे हैं।

बड़े बड़े अधिकारियों,डॉक्टरों,बैरिस्टरों, इंजीनियरों, राजनीतिक हस्तियों और फिल्म सितारों के घरों तक में यह स्थिति बनी हुई है।अधिकतर पति गृहस्थी के जहर को जाहिर नहीं करता। यह जाहिर तभी होता है जब तक कि पानी सिर से ऊपर न गुजर जाए या पति आत्महत्या कर ले।

आज महिलाओं द्वारा पुरुषों का तरह तरह से उत्पीड़न किया जा रहा है। इसमें समाज मूकदर्शक तथा पुलिस महिला वर्ग की सहायक बनी हुई है। पहले अक्सर सुनने में आता था कि अमुक महिला ने फांसी लगा ली है। पर अब उल्टा हो रहा है। फांसी लगाने वाले या अन्य तरीकों से आत्महत्या करने वाले अधिकांश पुरुष ही होते हैं और कारण किसी न किसी रूप में महिला ही होती है। दहेज एक्ट और बलात्कार एक्ट के प्रकरण भी अधिकतर झूठे होते हैं। पत्नी की पति पर जब तानाशाही नहीं चल पाती तब पति को ही नहीं उसके पूरे खानदान को दहेज के केस में फंसा दिया जाता है। कई बार भावावेश में पत्नी मर जाती है, और फिर पत्नी के परिवार वालों द्वारा पति परिवार को दहेज एक्ट में फंसा दिया जाता है। इसी प्रकार जब तक पुरुष से स्वार्थ पूरे होते रहते हैं तब तक मोहब्बत के साथ सबकुछ होता रहता है। स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर या अप्रिय स्थिति बन जाने पर वही बलात्कार बन जाता है।

महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों के बढ़ते दुरुपयोग को देखते हुए अब इन कानूनों पर नए सिरे से सोचने की आवश्यकता है। देश और दुनिया की बदली हुई परिस्थितियों में अब न नारी अबला है न पुरुष परमेश्वर। इस परिवर्तनशील दुनिया में मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर ही अब निर्णय लेना होंगे तभी हमारी संस्कृति और सभ्यता में वर्णित परिवार की परम्परा स्थापित रह सकेगी।

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