फीस लाखों, इलाज जीरो—सत्यानंद हॉस्पिटल की लापरवाही पर अदालत सख्त
शाहजहांपुर। शहर के चर्चित सत्यानंद हॉस्पिटल के तीन डॉक्टरों के खिलाफ़ न्यायालय ने गंभीर लापरवाही और धमकी देने के आरोपों में सम्मन जारी किया है। मामला शहर कोतवाली क्षेत्र की सुप्रिया नामक महिला से जुड़ा है, जिसकी सामान्य डिलीवरी के बाद प्लेसेंटा पेट में ही छोड़ दिया गया था। इस लापरवाही के चलते महिला लगातार ब्लीडिंग से जूझती रही और उसकी जान पर बन आई।
जानकारी के अनुसार, सुप्रिया की सामान्य डिलीवरी सत्यानंद हॉस्पिटल में हुई थी। डिलीवरी के बाद जब पति ने डॉक्टरों को लगातार हो रही ब्लीडिंग की जानकारी दी, तो डॉक्टरों ने इसे सामान्य समस्या बताकर सात दिन के इलाज की बात कही। इसके बाद भी समस्या बनी रही तो डॉक्टरों ने महिला को झूठी जानकारी देते हुए बताया कि गर्भाशय में गांठ है और थायराइड बड़ा हुआ है। साथ ही इलाज पर 30 हजार रुपये खर्च होने की बात कही और यहां तक कह दिया कि अगर हालत में सुधार न हुआ तो गर्भाशय निकालना पड़ेगा, जिससे महिला कभी मां नहीं बन पाएगी।
पति ने इलाज शुरू करवाया, लेकिन 15 दिन बाद भी स्थिति जस की तस रही। परिजनों के दबाव पर सुप्रिया की जांच वरुण अर्जुन मेडिकल कॉलेज में कराई गई। यहां डॉक्टरों ने बताया कि महिला के शरीर में केवल पांच यूनिट खून बचा है और डिलीवरी के दौरान बच्चे का प्लेसेंटा गर्भाशय में ही रह गया था। इसी कारण लगातार ब्लीडिंग हो रही थी। मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने बिना किसी बड़ी सर्जरी के प्लेसेंटा निकाल दिया और बताया कि अगर दो माह तक इसे नहीं निकाला जाता तो महिला को कैंसर हो सकता था और उसकी जान भी जा सकती थी।
अधिवक्ता उमेश कुमार वर्मा की पैरवी पर मामला न्यायालय तक पहुंचा। कोर्ट ने सीएमओ से रिपोर्ट तलब की। रिपोर्ट में स्पष्ट हुआ कि डॉ. इंदु यादव ने प्रसव के बाद बच्चेदानी की सफाई नहीं की, जिससे महिला को लगातार ब्लीडिंग होती रही।
इसके आधार पर अपर सिविल जज (जूनियर डिवीजन कोर्ट संख्या-31) वर्तिका पटेल ने तीन डॉक्टरों के खिलाफ़ सम्मन जारी किया है। इसमें डॉ. इंदु यादव पर आईपीसी की धारा 336 और 337 (जीवन को जोखिम में डालने और लापरवाही से चोट पहुंचाने) के तहत सम्मन हुआ है। वहीं डॉ. गौरव मिश्रा और डॉ. सौरभ मिश्रा को आईपीसी की धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत सम्मन जारी किया गया है।
चमचमाती इमारत और हाई-फाई फीस के बावजूद बुनियादी स्तर पर इलाज में इस तरह की गंभीर लापरवाही ने शहरवासियों में आक्रोश पैदा कर दिया है। सवाल यह है कि अगर डिलीवरी जैसे सामान्य मामलों में भी सही इलाज नहीं मिल पा रहा और शिकायत करने पर धमकी दी जा रही है, तो फिर मरीजों की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?