लोकतंत्र की गला घोंट नीति : न बोलो न लिखो बस सहो
प्रशांत कटियार
भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र में जब कोई नागरिक, पत्रकार, कवि, या कलाकार बोलता है, लिखता है या रचना करता है, तो यह केवल उसका संवैधानिक अधिकार नहीं होता यह लोकतंत्र की आत्मा की अभिव्यक्ति होती है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह आत्मा लगातार घायल हो रही है। अब कोई विचार रखना, कोई कविता पढ़ना, या किसी व्यवस्था पर सवाल उठाना साहस का नहीं, जोखिम का कार्य बन चुका है।14 जुलाई 2025 को बिहार के पटना जिले में वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के खिलाफ एक बीएलओ ने एफआईआर दर्ज करवाई। आरोप यह कि रवीश कुमार ने चुनाव आयोग की कार्यशैली की आलोचना करते हुए उसे एफआईआर आयोग कहा। एक ट्वीट के लिए एफआईआर,क्या अब पत्रकारों का व्यंग्य, सवाल पूछना और व्यवस्था पर टिप्पणी करना अपराध हो गया है।
बरेली के चर्चित शिक्षाविद डॉ. रजनीश गंगवार द्वारा सुनाई गई एक कविता को लेकर एक वर्ग विशेष के लोगों ने इतना विरोध किया कि उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया। यह मामला यह दिखाता है कि अब कविता की पंक्तियां भी भावनाएं आहत करने का बहाना बन गई हैं।
आजकल सोशल मीडिया पर एक वर्ग विशेष के लोग किसी भी असहमति या आलोचना पर न केवल विरोध करते हैं, बल्कि संगठित तरीके से ट्रोलिंग, धमकियां, और मानसिक प्रताड़ना देने लगते हैं। किसी व्यक्ति ने अगर धर्म, राजनीति, जाति या समाज की व्यवस्था पर कुछ कहा तो उसे गालियों, मारने की धमकियों, बहिष्कार और कभी कभी सॉफ्ट टारगेटिंग तक झेलनी पड़ती है।यह विचारों के आदान प्रदान की जगह वैचारिक आतंकवाद बन चुका है। कई वेब सीरीज़ और फिल्मों के निर्माता जब उन्होंने समाज का आइना दिखाया, तो उन्हें या तो अदालतों का सामना करना पड़ा या मंच से उतार दिया गया। यह उदाहरण दर्शाते हैं कि कला और हास्य भी अब सुरक्षित नहीं।
सवाल गंभीर हैं क्या हमारा लोकतंत्र अब केवल सत्ता की भाषा ही सुनना चाहता है?क्या ट्रोल सेना अब विचारों का मूल्य तय करेगी?क्या हमें संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) को फिर से पढ़ने और लागू करने की आवश्यकता नहीं?
अभिव्यक्ति की आज़ादी लोकतंत्र की रगों में दौड़ता खून है। लेकिन जब आवाज़ उठाने वालों को मुकदमों, ट्रोलिंग और धमकियों से चुप कराया जाता है, तो यह संकेत है कि लोकतंत्र भीतर ही भीतर दम तोड़ रहा है।इस देश को आज देशभक्त नहीं, सच बोलने वाले नागरिकों की ज़रूरत है।
अब समय आ गया है बोलिए, लिखिए, सवाल कीजिए, प्रतिरोध कीजिए वरना अगला नंबर आपका भी हो सकता है।
प्रशांत कटियार