लखनऊ| राजधानी लखनऊ में पुलिस ने एक ऐसे ठग को गिरफ्तार किया है जिसने सरकारी नौकरी और ऊँचे पद का झांसा देकर देशभर के लोगों से 80 करोड़ रुपये की ठगी कर डाली। आरोपी खुद को गुजरात कैडर का आईएएस अधिकारी बताता था और सोशल मीडिया पर ‘डॉ. विवेक मिश्रा, आईएएस (2014 बैच)’ के नाम से सक्रिय था। गिरफ्तारी के बाद लखनऊ पुलिस ने इसे हाल के वर्षों का सबसे संगठित ठगी नेटवर्क बताया है।
पुलिस के अनुसार, आरोपी की पहचान डॉ. विवेक मिश्रा (निवासी – बोकारो, झारखंड) के रूप में हुई है। वह खुद को गुजरात सरकार में सचिव पद पर तैनात बताता था और फेसबुक, इंस्टाग्राम तथा लिंक्डइन जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सरकारी अधिकारी के तौर पर अपनी प्रोफाइल बना रखी थी। उसके प्रोफाइल पर आईएएस ट्रेनिंग की तस्वीरें, सरकारी बैठकों की फोटो और मंत्रालयों से जुड़े फर्जी दस्तावेज़ अपलोड थे, जिन्हें देखकर लोग भ्रमित हो जाते थे।
डॉ. विवेक मिश्रा युवाओं को केंद्र सरकार और राज्य सरकार की नौकरियों में भर्ती कराने का झांसा देता था। कई लोगों से उसने “सेलेक्शन प्रक्रिया” और “वेरिफिकेशन शुल्क” के नाम पर लाखों रुपये वसूले। पुलिस की शुरुआती जांच में यह बात सामने आई है कि आरोपी ने अब तक करीब 150 लोगों से 80 करोड़ रुपये से अधिक की रकम ऐंठी है।
महिलाओं से भी ठगी, सोशल मीडिया पर रचता था भरोसे का जाल
पुलिस की पूछताछ में यह भी सामने आया है कि विवेक मिश्रा ने सोशल मीडिया के माध्यम से कई महिलाओं से दोस्ती कर उनके भरोसे का गलत फायदा उठाया। वह खुद को सरकारी मिशन पर तैनात ‘वरिष्ठ अधिकारी’ बताता था और अक्सर बड़े अधिकारियों के साथ फर्जी वीडियो कॉल भी दिखाता था। इसी विश्वास के आधार पर वह लोगों को पैसे देने या निजी जानकारी साझा करने के लिए तैयार कर लेता था।
जांच अधिकारियों ने बताया कि ठग ने अपना एक पूरा “ऑफिस सेटअप” तैयार कर रखा था जिसमें नकली सरकारी लेटरहेड, सील, आईडी कार्ड, लैपटॉप, सिम कार्ड और फर्जी नियुक्ति पत्र तैयार किए जाते थे। उसके साथ कई सहयोगी भी काम करते थे, जो खुद को मंत्रालय के कर्मचारियों के रूप में पेश करते थे।
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता की शिकायत पर खुला मामला
इस पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉ. आशुतोष मिश्रा ने आरोपी के खिलाफ औपचारिक शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में कहा गया था कि विवेक मिश्रा खुद को आईएएस अधिकारी बताकर कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों और संस्थानों से संपर्क कर रहा था। इसके बाद लखनऊ पुलिस ने साइबर टीम की मदद से आरोपी की गतिविधियों को ट्रैक किया और एक विशेष ऑपरेशन के तहत उसे गिरफ्तार कर लिया।
गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने आरोपी के ठिकाने से भारी मात्रा में फर्जी दस्तावेज, नकली सरकारी मुहरें, 12 मोबाइल फोन, 15 बैंक पासबुक और 8 एटीएम कार्ड बरामद किए हैं। जांच में यह भी पाया गया कि वह ठगी की रकम को बिटकॉइन और ऑनलाइन वॉलेट्स में ट्रांसफर कर देता था ताकि ट्रांजेक्शन ट्रेस न किया जा सके।
पुलिस की पूछताछ में खुल रहे नए राज, अन्य राज्यों तक फैला नेटवर्क
लखनऊ पुलिस अब आरोपी से गहन पूछताछ कर रही है। शुरुआती पूछताछ में उसने यह स्वीकार किया है कि उसने हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और गुजरात के कई लोगों से ठगी की है। वह सरकारी नौकरी के इच्छुक युवाओं को यह विश्वास दिलाता था कि “वह सीधे मंत्रालय से आदेश निकलवा सकता है।”
पुलिस यह भी जांच कर रही है कि क्या उसके नेटवर्क में कोई असली सरकारी अधिकारी या कर्मचारी शामिल था। जांच एजेंसियों का मानना है कि आरोपी ने पिछले तीन वर्षों में अपने फर्जीवाड़े को इतनी कुशलता से अंजाम दिया कि कई शिक्षित लोग भी उसके झांसे में आ गए।
लखनऊ पुलिस आयुक्त ने बताया कि यह मामला एक बड़ी चेतावनी है कि कैसे सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर अपराधी सरकारी पहचान का भ्रम पैदा कर रहे हैं। उन्होंने नागरिकों से अपील की है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा सरकारी नौकरी या पद के नाम पर मांगी जा रही रकम पर विश्वास न् करें।
आरोपी विवेक मिश्रा के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी, फर्जीवाड़ा और आईटी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। पुलिस ने उसे रिमांड पर लेकर आगे की पूछताछ शुरू कर दी है। अधिकारियों का कहना है कि बहुत जल्द उसके नेटवर्क से जुड़े अन्य लोगों की गिरफ्तारी भी हो सकती है।
लोगों के लिए सबक: “सरकारी नौकरी” के नाम पर न करें कोई भुगतान
इस घटना ने एक बार फिर साबित किया है कि ऑनलाइन माध्यमों में दिखने वाला हर प्रोफाइल वास्तविक नहीं होता। विवेक मिश्रा जैसे ठग सोशल मीडिया पर सरकारी पहचान का मुखौटा लगाकर आम लोगों के विश्वास का शिकार बनाते हैं। पुलिस ने जनता से अपील की है कि किसी भी भर्ती या नियुक्ति से जुड़ी जानकारी केवल सरकारी वेबसाइट या विभागीय पोर्टल से ही प्राप्त करें।





