“मैं भगोड़ा नहीं हूं, मुझे चोर न कहा जाये। मुझे अपना पक्ष रखने का मौका ही नहीं दिया गया।” यह बयान किसी आम व्यक्ति का नहीं, बल्कि भारत के सबसे विवादित कारोबारी विजय माल्या (Vijay Mallya) का है। एक समय था जब उनका नाम शान, स्टाइल और सफलता का प्रतीक था। वही विजय माल्या, जिन्होंने भारत (India) की अर्थव्यवस्था (economy) को झकझोर देने वाले कर्ज घोटाले के बाद देश छोड़ दिया, अब खुद को न्याय की गुहार लगाने वाला बता रहे हैं। इस बयान में कई परतें हैं — आत्म-पीड़ा, राजनीतिक संकेत, नाटकीयता, और शायद, वापसी की इच्छा भी। सवाल यह है कि क्या यह बयान सिर्फ मीडिया में सहानुभूति बटोरने की कोशिश है या वास्तव में भारत लौटने की एक गंभीर पेशकश?
बयान का प्रमुख अंश:
“मैं भगोड़ा नहीं हूं। ना तो मैं अपराधी हूं। मुझे तो अपना पक्ष रखने का मौका ही नहीं दिया गया। एक समय था जब देश की सभी बड़ी पार्टियां मुझे सम्मान देती थीं। फिल्म इंडस्ट्री की तमाम अभिनेत्रियाँ मेरे आगे-पीछे घूमती थीं। मैं भारत आने को तैयार हूं, लेकिन मुझे निष्पक्ष सुनवाई चाहिए।” विजय माल्या: एक परिचय पूरा नाम: डॉ. विजय माल्या पूर्व चेयरमैन: किंगफिशर एयरलाइंस, यूनाइटेड ब्रुअरीज़ ग्रुप राजनीतिक भूमिका: राज्यसभा सांसद (2002–2016)
प्रमुख विवाद: बैंकों से ₹9,000 करोड़ से अधिक का कर्ज लेकर चुकता न करना और 2016 में देश छोड़ देना भारतीय अदालतों ने विजय माल्या को “भगोड़ा आर्थिक अपराधी” घोषित किया है।
फ्यूजिटिव इकोनॉमिक ऑफेंडर एक्ट, 2018 के तहत किसी भी ऐसे व्यक्ति को भगोड़ा घोषित किया जाता है जो—100 करोड़ या उससे अधिक की आर्थिक धोखाधड़ी करता है, और जांच या अदालत से बचने के लिए भारत से भाग जाता है। लेकिन विजय माल्या का दावा है कि > “मुझे देश छोड़ने से पहले कभी गिरफ्तार नहीं किया गया। मैं जांच में सहयोग कर रहा था। जब मुझे उत्पीड़न का डर हुआ, तब मैंने लंदन का रुख किया।”
क्या यह सफाई सच्चाई के करीब है, या एक कानूनी बहाना?
माल्या का यह बयान केवल कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक रंग भी लिए हुए है:“देश की सभी बड़ी पार्टियां मुझे सम्मान देती थीं” – यह कथन सत्ता और विपक्ष दोनों को कठघरे में खड़ा करता है।
“फिल्म इंडस्ट्री की अभिनेत्रियाँ मेरे आगे-पीछे घूमती थीं” –
यह उनके पुराने रसूख और स्टाइलिश इमेज को दोहराने की कोशिश है। “भारत आने को तैयार हूं” – यह बयान एक तरह से सरकार को चुनौती और आम जनता को आश्वासन दोनों है। ऐसे बयान कई बार कोर्ट की कार्यवाही या प्रत्यर्पण केस में जनता और न्यायपालिका पर प्रभाव डालने के लिए दिए जाते हैं। ब्रिटेन की अदालत में भारत की तरफ से माल्या को लाने की कोशिशें बार-बार लंबी कानूनी लड़ाइयों में उलझती रहीं हैं।
यदि माल्या यह कह रहे हैं कि “मैं आने को तैयार हूं”, तो भारत सरकार को यह चुनौती स्वीकार करनी चाहिए, बशर्ते—वे बिना किसी विशेष संरक्षण के लौटें,अदालत के समक्ष पेश हों, और सारे आर्थिक बकाये चुकाने का रोडमैप प्रस्तुत करें। सवाल उठते हैं:अगर वह निर्दोष हैं, तो स्वेच्छा से लौट क्यों नहीं आए? क्या ये बयान उस वक्त दिया गया जब प्रत्यर्पण प्रक्रिया निर्णायक दौर में है?क्यों अब उन्हें ‘न्याय’ की याद आ रही है, जबकि 7 साल से वे लंदन में बैठे हैं?
भारत के बैंकों से लिया गया हजारों करोड़ का कर्ज अब आम जनता के कर से भरना पड़ रहा है। विजय माल्या का भव्य जीवन-शैली और लंदन के आलीशान बंगले उस पीड़ा को और गहरा बना देते हैं।
आज जब युवा रोजगार के लिए संघर्ष कर रहा है, किसान कर्ज तले दबा है, एक कारोबारी का ऐसा स्वैग और फिर न्याय की मांग—जनता को आहत करता है।विजय माल्या ने कह तो दिया—”भारत आने को तैयार हूं”, पर क्या भारतीय न्याय प्रणाली, सरकार और जनता तैयार है? यह सवाल इसलिए भी बड़ा है क्योंकि इस तरह के हाई-प्रोफाइल केस अक्सर— सालों खिंचते हैं, मीडिया ट्रायल में बदल जाते हैं, और अंततः आरोपी कानून की जाल से निकल जाते हैं। अगर माल्या लौटते हैं तो—
क्या उन्हें VIP ट्रीटमेंट मिलेगा?
क्या उनकी संपत्ति जब्त की जाएगी?
क्या उन्हें भारतीय जेल में रखा जाएगा?
विजय माल्या का इंटरव्यू और बयान कई भावनात्मक और कानूनी विमर्श को जन्म देता है। यह समय है कि— सरकार गंभीरता से प्रत्यर्पण पर ध्यान दे,और जनता को यह भरोसा दिया जाए कि कानून सबके लिए बराबर है।सिर्फ बयान देने से भरोसा नहीं बनता। देश के पैसे की वापसी, कानून का सम्मान और पीड़ित बैंकों की सुरक्षा ही असली न्याय होगी।
शरद कटियार