लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में वरिष्ठ अधिवक्ता नामित करने संबंधी हालिया अधिसूचना पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता अनुपम मेहरोत्रा ने इस अधिसूचना को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की, जिसमें चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता और योग्यता को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।

याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने विशेष रूप से इस मामले को गंभीर माना है और नामित किए गए सभी 90 वकीलों को पक्षकार बनाया है। अदालत ने ईमेल से नोटिस जारी करने का आदेश दिया है और कोर्ट प्रशासन व सभी चयनित वकीलों से चार सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है।

याचिका में क्या कहा गया?

कई वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता बनाने में स्थापित मानकों का पालन नहीं किया गया।

याचिकाकर्ता का दावा है कि कई चयनित वकीलों के नाम एक भी एएफआर जजमेंट (जजमेंट एप्रूव्ड फॉर रिपोर्टिंग) से नहीं जुड़े हैं।

एएफआर जजमेंट वरिष्ठ अधिवक्ता बनने की योग्यता का प्रमुख मानक है, परंतु इसे नजरअंदाज किया गया।

चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और संभावित पक्षपात का आरोप।

याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया है कि पूरी चयन प्रक्रिया की समीक्षा की जाए और जो वकील तय मानकों को पूरा नहीं करते, उनके नाम सूची से हटाए जाएं।

कोर्ट की सख्ती, सभी 90 चयनित वकील इस मामले में पार्टी बनाए गए,नोटिस ईमेल के माध्यम से भेजने का आदेश, चार सप्ताह में विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।

अदालत ने स्पष्ट किया है कि वरिष्ठ अधिवक्ता जैसे संवैधानिक दर्जे की प्रक्रिया में कोई भी अस्पष्टता या नियमों से विचलन स्वीकार नहीं किया जाएगा।

कोर्ट में चार सप्ताह बाद इस मामले की अगली सुनवाई होगी। माना जा रहा है कि यह मामला वकालत जगत में बड़े बदलाव की शुरुआत कर सकता है, क्योंकि पहली बार इतनी बड़ी संख्या में वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति पर व्यापक आपत्तियां सामने आई हैं।

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