प्रकृति ने हमें अनगिनत औषधीय पौधों से नवाज़ा है, जिनमें से एक महत्वपूर्ण और बहुआयामी औषधि सप्तपर्णी है। सम्पूर्ण भारत में यह सदा बहार वृक्ष आसानी से पाया जाता है और सदियों से आयुर्वेद, सिद्ध तथा यूनानी चिकित्सा पद्धतियों में इसका उपयोग किया जाता रहा है। अपने औषधीय गुणों के कारण यह पौधा दुर्बलता से लेकर गंभीर बीमारियों तक में राहत प्रदान करता है।
सप्तपर्णी की पहचान
सदा हरा रहने वाला यह वृक्ष दिसंबर से मार्च तक छोटे-छोटे सफेद सुगंधित फूलों से भरा रहता है। स्थानीय एवं वैज्ञानिक नामों के रूप में इसे स्कोलैरिस, अलिस्टोनियां, ब्लैक बोर्ड ट्री, डीटा वार्क, सत्तचद और छत्रपर्ण के नाम से भी जाना जाता है। दिलचस्प बात यह है कि दुनिया के कुछ हिस्सों में इसे अशुभ या शैतान वृक्ष भी कहा जाता है, हालांकि इसके चिकित्सीय फायदों के आगे ये धारणाएं गौण पड़ जाती हैं।
औषधीय गुण एवं उपयोग
सप्तपर्णी के पत्ते, छाल और जड़ें विभिन्न रोगों के इलाज में उपयोगी हैं। यह औषधि निम्नलिखित समस्याओं में लाभकारी मानी जाती है:
मलेरिया (विषम ज्वर)
खुले घाव और उनके दाग
दस्त एवं आंत संबंधी विकार
नपुंसकता और पीलिया
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
त्वचा रोग
सांप के काटने पर उपचार
लिवर संबंधी समस्याएं
कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की रोकथाम
सप्तपर्णी की छाल एवं पत्तों का अर्क घावों को तेजी से भरने में सहायक होता है, वहीं इसका उपयोग शरीर की कमजोरी दूर करने के लिए भी किया जाता है
नवीन शोध एवं उत्पाद
लंबे शोध के बाद माई उपचार के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग कर माई उपचार आयुर्वेदा कैप्सूल तैयार किया है, जो मुख्य रूप से सप्तपर्णी से निर्मित है। इसके उपयोग से अब तक कई रोगियों में सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं।
सावधानियां,जहां एक ओर सप्तपर्णी के अनेक लाभ हैं, वहीं कुछ स्थितियों में इसका सेवन हानिकारक भी हो सकता है:एलर्जी से पीड़ित व्यक्तियों के लिए दमा (अस्थमा) रोगियों के लिए
गर्भवती महिलाओं को इससे दूर रहना चाहिए
नोट:: उपरोक्त परिस्थितियों में सेवन करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह आवश्यक है।