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Friday, June 6, 2025

विश्व पर्यावरण दिवस: “प्रकृति के साथ सामंजस्य: यही है सतत भविष्य की कुंजी”

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हर वर्ष 5 जून को पूरी दुनिया विश्व पर्यावरण दिवस मनाती है। यह दिन न केवल पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का अवसर है, बल्कि यह हमें हमारी जिम्मेदारियों की भी याद दिलाता है — हम प्रकृति के संरक्षक हैं, शोषक नहीं। इस वर्ष का थीम है: “हमारी पृथ्वी, हमारा भविष्य – हरित समाधान अपनाएं”, जो हमें प्रकृति के साथ टिकाऊ संबंध विकसित करने की दिशा में प्रेरित करता है।
वृक्ष, जल, वायु, मिट्टी और पशु-पक्षी – ये सभी पर्यावरण के महत्वपूर्ण घटक हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना अधूरी है। अगर पर्यावरण संतुलन में रहता है तो जीवन सहज और सुरक्षित रहता है। लेकिन जब यह संतुलन बिगड़ता है तो बाढ़, सूखा, भूकंप, महामारी जैसी आपदाएँ दस्तक देती हैं।

आज जिस तरह से प्रदूषण, वनों की कटाई, प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग और जलस्रोतों का दोहन हो रहा है, वह हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।

औद्योगिक क्रांति के बाद से पृथ्वी के तापमान में औसतन 1.1°C की वृद्धि हो चुकी है। IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट बताती है कि अगर हमने अभी कदम नहीं उठाए, तो 2050 तक समुद्री स्तर में भारी वृद्धि होगी, जिससे तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाएंगे।

भारत जैसे विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े भुगतभोगी हैं। हमें गांव-शहर, सरकार-जनता सभी को मिलकर एकजुट होकर पर्यावरण रक्षा की ओर कदम बढ़ाने होंगे।हर व्यक्ति साल में कम से कम 5 पेड़ लगाए तो करोड़ों नए पेड़ धरती को सांस दे सकते हैं। कपड़े के थैले, स्टील की बोतलें और बांस के ब्रश जैसे विकल्प अपनाएं। अनावश्यक बल्ब, पंखे और नल खुले न छोड़ें। इससे वायु प्रदूषण में भारी कमी लाई जा सकती है। गीला और सूखा कचरा अलग-अलग करें और पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित करें।

सरकारी योजनाएँ जैसे “स्वच्छ भारत अभियान”, “राष्ट्रीय हरित मिशन”, और “जल जीवन मिशन” तभी सफल हो सकते हैं जब हम सब व्यक्तिगत तौर पर सहयोग करें। स्कूलों में बच्चों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना होगा। ग्राम पंचायत से लेकर नगर निगम तक हर स्तर पर हरियाली बढ़ाने, जल-संरक्षण और स्वच्छता पर सामूहिक अभियान चलाए जाने चाहिए।

केरल के कुट्टनाड इलाके में किसानों ने सामूहिक रूप से ऑर्गेनिक खेती शुरू की, जिससे रसायनों का उपयोग घटा।

राजस्थान में कई गांवों ने परंपरागत जल संरचनाएं (जैसे बावड़ी, तालाब) पुनर्जीवित कर जल संकट पर विजय पाई।

उत्तराखंड में “चिपको आंदोलन” आज भी एक पर्यावरण जनांदोलन का प्रेरणा स्रोत है।

पर्यावरण संरक्षण केवल बाहरी प्रकृति की रक्षा नहीं है, यह हमारे भीतर के वातावरण को भी शुद्ध करने का माध्यम है। जब हम हरियाली के बीच जाते हैं तो मन शांत होता है, तनाव घटता है। यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि प्रकृति में समय बिताना मानसिक स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान है।

पर्यावरण रक्षा कोई एक दिन की मुहिम नहीं, यह हर दिन का संकल्प बनना चाहिए। यह धरती हमारी विरासत नहीं है, बल्कि हमारी अगली पीढ़ी से लिया गया उधार है।

आइए, इस विश्व पर्यावरण दिवस पर हम सभी संकल्प लें कि:

हर महीने एक पेड़ लगाएँ।
प्लास्टिक मुक्त जीवन अपनाएं।
जल और ऊर्जा की बर्बादी रोकें।
अगली पीढ़ी को ‘हरित भारत’ सौंपें।
🌱”जब प्रकृति बचेगी, तभी भविष्य बचेगा।”

✍🏻 लेखक: रोहित श्रीवास्तव
(पर्यावरण विषयों पर जागरूकता अभियान से जुड़े लेखक व यूथ इंडिया के उप संपादक हैं)

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