प्रशांत कटियार
अंधकार चाहे कितना भी गहरा हो, एक दीया हमेशा जीतता है
हर साल दीपावली पर जब हम अपने घरों की चौखट पर दीप जलाते हैं, तब अनजाने में हम एक शाश्वत सत्य को दोहराते हैं — सत्य परेशान हो सकता है, पर पराजित नहीं।
यह दीया केवल तेल और बाती का नहीं होता, यह विश्वास और साहस का प्रतीक होता है। यह बताता है कि अंधकार का अस्तित्व केवल तब तक है, जब तक कोई दीप जलाने का साहस न करे।
हमारा समाज, हमारा देश और हमारी आत्मा—सब किसी न किसी रूप में इस संघर्ष से गुजरते हैं। कभी अन्याय के अंधकार से, कभी झूठ की चकाचौंध से, कभी लालच और भय के धुएँ से। लेकिन इतिहास गवाह है— जब-जब अंधेरा घना हुआ, तब-तब किसी ने एक दीया जलाया और युग बदल गया।
राम ने भी वनवास में यही किया था।
गांधी ने भी इसी दीप से सत्याग्रह की राह जगमगाई थी।
और आज का दीपावली महोत्सव हमें उसी संदेश की याद दिलाता है— सत्य की लौ बुझ नहीं सकती, वह बार-बार प्रज्वलित होती है, हर बार और अधिक तेज़ी से।
आज जब झूठ, छल और सत्ता का अहंकार समाज पर छाने की कोशिश करता है, तब हर दीप हमसे प्रश्न करता है —
> “क्या तुमने अपने भीतर का दीप जलाया है?”
क्योंकि असली जीत तब होती है जब हम अपने भीतर की सच्चाई को पहचानते हैं।
दीप का प्रकाश यह नहीं कहता कि अंधकार नहीं रहेगा, बल्कि यह कहता है कि “मैं यहाँ हूँ, अंधकार से लड़ने के लिए।”
सत्य की राह कठिन है, लेकिन यही राह इतिहास को अमर बनाती है।
यह वही सत्य है जिसने भगवान राम को रावण पर विजय दिलाई, जिसने भगत सिंह को फांसी के तख़्त पर मुस्कुराने की ताकत दी, जिसने हर संघर्षशील पत्रकार, हर ईमानदार नागरिक, हर कर्मयोगी को अपने कर्तव्य पर अडिग रखा।
आज जब समाज भ्रमों में उलझा है, तब दीपावली हमें याद दिलाती है—
“सत्य की लौ छोटी हो सकती है, लेकिन उसका प्रकाश अनंत है।”
और यही दीप, यही ज्योति हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है—
कि चाहे कितनी भी कठिन रात क्यों न हो, प्रभात का सूरज सत्य की ही ओर से उगता है।
इस दीपावली, आइए हम प्रण करें—
हम अपने भीतर का सत्य जीवित रखें।
हम भय, झूठ और स्वार्थ के अंधकार से न डरें।
हम हर उस जगह एक दीप जलाएँ जहाँ अंधेरा बस गया है — चाहे वह समाज का हो, व्यवस्था का या अंतरात्मा का।
क्योंकि दीप जलाना ही प्रतिरोध है, और सत्य को थामे रहना ही विजय।
याद रखिए,
> सत्य परेशान हो सकता है, पर पराजित नहीं।






