एच-1बी वीज़ा पर अमेरिका का झटका : भारत की आईटी दुनिया पर संकट

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मेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस फैसले ने, जिसमें नए एच-1बी वीज़ा आवेदन पर एकमुश्त 1 लाख डॉलर शुल्क लगाने की घोषणा की गई है, भारत की आईटी इंडस्ट्री और पेशेवरों को गहरे संकट में डाल दिया है। व्हाइट हाउस भले ही इसे वार्षिक टैक्स न मानकर एक बार लिया जाने वाला शुल्क बता रहा है, लेकिन इसका असर किसी भारी कर से कम नहीं है।
एच-1बी वीज़ा लंबे समय से अमेरिका की तकनीकी प्रगति का आधार रहा है। भारतीय प्रतिभा ने गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न, एप्पल और मेटा जैसी दिग्गज कंपनियों की सफलता में अहम योगदान दिया है। वहीं, टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, टेक महिंद्रा और एचसीएल जैसी भारतीय कंपनियों ने भी इसी वीज़ा व्यवस्था पर अपने वैश्विक कारोबार का विस्तार किया है। अब जब इतना भारी शुल्क थोप दिया गया है, तो इसका सीधा मतलब है कि इस प्रतिभा आपूर्ति की धारा को अमेरिका ने जानबूझकर संकुचित कर दिया है।
समय भी बेहद कठिन है। वैश्विक मंदी और आउटसोर्सिंग बाज़ार की चुनौतियों से जूझ रहे भारतीय आईटी क्षेत्र पर अब यह अतिरिक्त बोझ और दबाव डाल देगा। इससे केवल कंपनियाँ ही नहीं, बल्कि हजारों पेशेवरों का भविष्य भी दांव पर लग गया है। हालात इतने गंभीर हैं कि अमेरिका में बसे भारतीय अपने भारत आने की योजनाएँ टाल रहे हैं, और जो भारत में हैं वे वापस लौटने की अनिश्चितता से चिंतित हैं। वॉशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास को आपातकालीन हेल्पलाइन जारी करनी पड़ी है, जो स्थिति की गंभीरता को साफ़ दर्शाता है।
यहाँ बुनियादी सवाल उठता है—क्या अमेरिका सुरक्षा और संरक्षणवाद के नाम पर अपनी तकनीकी बढ़त को खुद कमजोर करने जा रहा है? क्या यह कदम भारतीय प्रतिभा को रोककर चीन जैसे देशों के लिए अवसर पैदा नहीं करेगा? और क्या यह निर्णय उस भारत-अमेरिका साझेदारी के लिए सकारात्मक संदेश है, जिसे 21वीं सदी का सबसे अहम आर्थिक रिश्ता बताया जाता रहा है?
ट्रंप प्रशासन इसे “अमेरिका फर्स्ट” की राजनीति का हिस्सा बता सकता है, लेकिन असलियत में यह कदम अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को चोट पहुँचाएगा। नवाचार और प्रगति हमेशा खुलेपन से आती है, न कि दीवारें खड़ी करने से।
भारत के लिए यह घटना चेतावनी है। अमेरिकी वीज़ा पर अत्यधिक निर्भरता हमारी आईटी रणनीति की सबसे कमजोर कड़ी रही है। अब समय है कि भारतीय कंपनियाँ अपने बाज़ारों का विविधीकरण करें, घरेलू नवाचार को मज़बूत करें और अन्य देशों के साथ प्रतिभा आवाजाही (मोबिलिटी) समझौते करें।
असल में यह केवल शुल्क की बढ़ोतरी नहीं है, बल्कि वैश्विक प्रतिभा गतिशीलता में एक नए दौर की शुरुआत है। भारत के नीति-निर्माताओं, उद्योग जगत और पेशेवरों को इस हकीकत को स्वीकार कर तेज़ी से नए विकल्प तलाशने होंगे। अमेरिका दरवाज़े बंद कर सकता है, लेकिन तकनीक की दुनिया इतनी जुड़ी हुई है कि कोई दीवार ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकती।

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