लखनऊ। उत्तर प्रदेश के खाद्य एवं रसद विभाग का इस बार का रबी सीजन में मक्का खरीद अभियान अपेक्षित सफलता नहीं हासिल कर पाया। सरकार द्वारा तय किए गए 22 जिले, 135 क्रय केंद्र, 46 दिनों की समयसीमा और 2225 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बावजूद विभाग लक्ष्य से पीछे रह गया। निर्धारित 25 हजार टन की खरीद के मुकाबले गुरुवार तक केवल 18,818 टन मक्का की ही खरीद हो सकी।खरीद अभियान की सबसे बड़ी बाधा कड़े मानक बनकर सामने आए।
नियमों के अनुसार, यदि मक्का में 14 प्रतिशत से अधिक नमी, क्षतिग्रस्त दाने, या अन्य खाद्यान्न की मात्रा 2 प्रतिशत से अधिक होती, तो उसकी खरीद नहीं की जाती थी। वर्षा के मौसम में उपज को सुखा पाना किसानों के लिए पहले से ही कठिन था। ऐसे में बड़ी संख्या में किसानों को केंद्रों से वापस कर दिया गया या उन्होंने निजी बाजारों की ओर रुख किया, जहां सरकारी मानकों जैसी सख्ती नहीं थी।
खरीद की शुरुआत से ही अभियान में सुस्ती रही। 15 जून से शुरू हुए अभियान में पहले आठ दिन तक अधिकांश केंद्रों पर कोई खरीद नहीं हुई। राज्यभर में 155 केंद्र खोले जाने थे, परंतु शुरुआती हफ्ते में केवल 120 ही शुरू हो सके। धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ी और अंत में 135 केंद्रों तक पहुंची। फिर भी इससे खरीद के आंकड़े को गति नहीं मिल पाई।राज्य के अलीगढ़, एटा, कासगंज, हाथरस, मैनपुरी, बदायूं, बलिया, अयोध्या, मीरजापुर, गोंडा, रामपुर, फर्रुखाबाद सहित 22 जिलों में ये केंद्र संचालित किए गए।
क्रय केंद्रों की ओर से जारी नियमों और बाजार भाव के बीच फंसे किसानों के सामने असमंजस की स्थिति रही। शुरू में जब मक्का की बाजार कीमत 1500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास थी, तब केंद्रों पर खरीद नहीं हो रही थी। बाद में कीमतें बढ़ीं और यह 1900 से 2200 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचीं, जो फिर भी MSP से कम थी, लेकिन बाजार में सरकारी मानकों की सख्ती न होने के चलते किसानों ने वहीं बिक्री करना बेहतर समझा।इस बार मक्का बेचने के लिए 5832 किसानों ने पंजीकरण कराया था, लेकिन अंत तक केवल 3085 किसान ही अपनी फसल केंद्रों तक ले जा सके।
यानी लगभग आधे किसान सरकारी प्रक्रिया से बाहर रह गए। नतीजा यह कि इस पूरे अभियान में सरकारी तंत्र लक्ष्य से करीब 6 हजार टन पीछे रह गया।खरीद के लिए बनाए गए सख्त मानक, बारिश का मौसम, केंद्रों की देर से शुरुआत और किसानों की उपेक्षा इन सभी कारणों ने मिलकर इस बार मक्का खरीद को सरकार की एक अधूरी और नाकाम कोशिश में तब्दील कर दिया।