– योगी आदित्यनाथ की विशेष पूजा ने गुरु पूर्णिमा को बनाया और भी गरिमामयी
शरद कटियार
गुरु शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति की आत्मा है – एक ऐसा संबंध जो केवल ज्ञान तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर मार्गदर्शन और प्रेरणा का स्रोत होता है। गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हुआ आयोजन इसी सनातन परंपरा का जीवंत उदाहरण रहा। विशेष रूप से इस वर्ष की पूजा को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति और सहभागिता ने और भी भव्य, भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक बना दिया।
योगी आदित्यनाथ केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि नाथ संप्रदाय के वर्तमान पीठाधीश्वर भी हैं। जब वे गोरखनाथ मंदिर में गुरु गोरक्षनाथ के चरणों में पुष्प अर्पित करते हैं, तो वह क्रिया केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रह जाती, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा की सार्वजनिक पुनःस्थापना का प्रतीक बन जाती है।
इस आयोजन में उनकी पूजा-अर्चना, वैदिक मंत्रों का उच्चारण, हवन और श्रद्धालुओं से स्नेहिल संवाद – सब कुछ साधुता और राजधर्म के समन्वय की मिसाल थे। उन्होंने जिस भाव से अपने गुरु को नमन किया और संतों का आशीर्वाद लिया, वह आज के यांत्रिक युग में संस्कार और श्रद्धा के जीवंत दर्शन कराता है।
गौरतलब है कि मंदिर में उमड़ी भीड़ और श्रद्धालुओं की आस्था, यह स्पष्ट संकेत देती है कि समाज अब भी धार्मिक मूल्यों और गुरु परंपरा को महत्व देता है। इस आयोजन की सुरक्षा, व्यवस्था और अनुशासन ने प्रशासनिक कुशलता को भी रेखांकित किया, जिसमें किसी भी प्रकार की अव्यवस्था या असुरक्षा की कोई खबर नहीं रही।
मुख्यमंत्री योगी का यह कथन कि “गुरु जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पथप्रदर्शक होता है”, केवल एक वक्तव्य नहीं बल्कि आज के युवा और समाज के लिए एक संदेश है – कि आधुनिकता की दौड़ में भी अपने गुरु, संस्कार और सांस्कृतिक जड़ों को न भूलें।
गोरखनाथ मंदिर का यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक चेतना को भी जाग्रत करने वाला था। जब एक राज्य का मुखिया इस प्रकार सार्वजनिक रूप से गुरु परंपरा का पालन करता है, तो वह परंपरा और आधुनिक प्रशासन के मूल्यवान संगम का उदाहरण बन जाता है।
यह आयोजन हमें याद दिलाता है कि भारत की आत्मा अभी भी जीवित है – और उसकी धड़कनें गूंजती हैं हर उस स्थान पर, जहां गुरु का सम्मान होता है।
