शरद कटियार
देश के लिए यह अत्यंत गर्व का क्षण है कि भारत के प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन एवं राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स), रांची के निदेशक प्रो. (डॉ.) राजकुमार को ब्रिटिश संसद द्वारा सम्मानित किया गया है। यह सम्मान केवल एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं, बल्कि भारतीय चिकित्सा प्रणाली की साख और क्षमता की वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक है।
कॉमनवेल्थ मेडिकल एसोसिएशन के अंतरराष्ट्रीय समारोह में, 56 देशों के चिकित्सा वैज्ञानिकों एवं प्रतिनिधियों की उपस्थिति में जब यूनाइटेड किंगडम की सांसद व मंत्री सीमा मल्होत्रा ने डॉ. राजकुमार को सम्मानित किया, तो यह क्षण न केवल चिकित्सा समुदाय के लिए प्रेरणास्पद था, बल्कि एक शक्तिशाली संदेश भी था—कि समर्पण, अनुसंधान और सेवा का मार्ग वैश्विक मंचों पर भी सराहा जाता है।
डॉ. राजकुमार का योगदान केवल ऑपरेशन थिएटर तक सीमित नहीं है। उन्होंने बाल मस्तिष्क शल्य चिकित्सा (Pediatric Neurosurgery) में शोध और नवाचार को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। देश में उन्होंने न्यूरोलॉजिकल सर्जन सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना कर विशेषज्ञों को एक साझा मंच दिया। चिकित्सा शिक्षा में भी उनकी भूमिका अग्रणी रही है—चाहे वह एसजीपीजीआई लखनऊ में विभागाध्यक्ष के रूप में हो, एम्स ऋषिकेश के संस्थापक निदेशक के रूप में, या यूपीयूएमएस सैफई के कुलपति के रूप में।
‘आधुनिक जीवक’ की उपाधि पहले ही यह स्पष्ट कर चुकी थी कि वे महज एक चिकित्सक नहीं, बल्कि संवेदना, निष्ठा और वैज्ञानिक सोच के प्रतीक हैं। अब ब्रिटिश संसद का यह अंतरराष्ट्रीय सम्मान उनके योगदान को विश्व स्तर पर मान्यता देता है।
ऐसे समय में जब चिकित्सा क्षेत्र में व्यावसायीकरण की आलोचना आम होती जा रही है, डॉ. राजकुमार जैसे व्यक्तित्व यह भरोसा दिलाते हैं कि चिकित्सा सेवा आज भी एक मानवीय धर्म है, जिसका उद्देश्य सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि पीड़ितों के जीवन में आशा और भरोसा लौटाना है।
भारत को ऐसे चिकित्सक पर गर्व है। यह सम्मान आने वाली पीढ़ी के चिकित्सकों के लिए एक उदाहरण है कि परिश्रम, निष्ठा और सेवा भाव से न केवल देश, बल्कि पूरी दुनिया के मंच पर सम्मान अर्जित किया जा सकता है।
