फर्रुखाबाद। जिला इन दिनों गंगा और रामगंगा के भीषण उफान से त्राहिमाम कर रहा है। लगातार बारिश और नदियों के बढ़ते जलस्तर ने जनजीवन पूरी तरह से अस्त व्यस्त कर दिया है। गंगा ने इस बार पिछले दो दशकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 182 गांव पूरी तरह से बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं और दो लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। करीब 23 हजार से ज्यादा परिवारों को अपने घर-आंगन छोड़ने पड़े हैं। गुरुवार को गंगा का जलस्तर 137.20 मीटर तक पहुंच गया, जो खतरे के निशान से 10 सेंटीमीटर ऊपर है, वहीं रामगंगा का जलस्तर 136.30 मीटर दर्ज किया गया। वर्ष 2010 की तुलना में इस बार हालात कहीं ज्यादा भयावह हैं और पानी का स्तर उस बाढ़ से भी अधिक है। गंगा का कहर कंपिल की कटरी, शमसाबाद की तराई, गंगापार के क्षेत्र, सदर तहसील के नजदीकी इलाकों और कमालगंज के भोजपुर तक फैल चुका है। गंगापार के हालात सबसे खराब बताए जा रहे हैं। जहां कभी खेतों में लहलहाती फसलें दिखती थीं, वहां अब सिर्फ पानी का अथाह समंदर दिखाई दे रहा है। गांवों की गलियां नदियों में बदल चुकी हैं, सड़क पर खड़े ट्रैक्टर और रोड रोलर आधे पानी में डूबे हुए हैं, मानो अपनी बेबसी बयां कर रहे हों। जिन घरों की दहलीज कभी खुशियों से गूंजती थी, वहां अब लोग छतों पर शरण लिए हुए हैं। बाढ़ से जूझ रहे लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या खाने और पीने के पानी की है। छोटे बच्चे भूख से तड़प रहे हैं और मासूम सवाल कर रहे हैं माँ, हम घर कब लौटेंगे, मां अपने आंसुओं को छुपाकर बच्चों को ढांढस बंधा रही है, ताकि हिम्मत बनी रहे। वहीं बुजुर्ग अपनी पूरी जिंदगी की कमाई और मेहनत को पानी में बहते हुए देखकर लाचार खामोश बैठे हैं। इस आपदा की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाएं राहत कार्यों में जुटी हैं। नावों के जरिए लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। खाने पीने का सामान और दवाइयां बांटी जा रही हैं। कई टीमें लगातार बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा कर रही हैं। हालांकि अभी भी हालात बहुत चिंताजनक बने हुए हैं और कई गांव ऐसे हैं, जहां तक राहत पहुंचाना बेहद कठिन हो रहा है। बावजूद इसके, धीरे-धीरे गंगा का जलस्तर घटने लगा है, जिससे प्रभावित परिवारों में थोड़ी उम्मीद जगी है। फर्रुखाबाद की यह बाढ़ केवल खेत-खलिहान और घरों को नुकसान पहुंचाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसान की हिम्मत, धैर्य और उम्मीद की भी कठिन परीक्षा ले रही है। यह प्राकृतिक आपदा साफ संकेत देती है कि प्रकृति के सामने इंसान कितना असहाय हो सकता है और साथ ही यह चेतावनी भी है कि भविष्य में इस तरह की आपदाओं से निपटने के लिए ठोस तैयारी और योजनाओं की कितनी आवश्यकता है।