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Saturday, July 19, 2025

“गौमाता से राजमाता तक: एक सांस्कृतिक क्रांति की ओर”

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शरद कटियार

भारतीय समाज में गाय को केवल एक पशु नहीं, अपितु मातृरूपा के रूप में देखा गया है। “गावो विश्वस्य मातरः” जैसी वैदिक उद्घोषणाएं हमारी सांस्कृतिक चेतना में गहराई तक समाई हैं। इसी भावभूमि पर खड़े होकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा गौमाता (Gaumata) को ‘राजमाता’ (Rajmata) का दर्जा देना एक ऐतिहासिक निर्णय बन जाता है — न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अस्मिता के परिप्रेक्ष्य में भी।

इस ऐतिहासिक कदम के लिए उन्हें शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा विशेष सम्मान से नवाजा जाएगा। यह सम्मान भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज की 101वीं जयंती के अवसर पर मुंबई में आयोजित समारोह में प्रदान किया जाएगा।शंकराचार्य द्वारा चांदी के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों से तैयार विशेष ग्रंथ में मुख्यमंत्री शिंदे का नाम अंकित किया जाना, इस निर्णय की ऐतिहासिकता को और अधिक उज्ज्वल बना देता है।

यह सम्मान केवल एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि उस चेतना को समर्पित है जो गौमाता को भारतीय जीवन की धुरी मानती है। जब राष्ट्र की राजधानी में बने नए संसद भवन में प्रवेश का प्रथमाधिकार गौमाता की प्रतीकात्मक मूर्ति को मिलता है, तब यह स्पष्ट हो जाता है कि गौसंरक्षण केवल परंपरा नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा है।

शंकराचार्य द्वारा चलाया जा रहा राष्ट्रव्यापी अभियान — जिसमें 33 करोड़ गौ-प्रतिष्ठा महायज्ञ शामिल है — इस चेतना को पुनः जाग्रत करने का प्रयास है। यह पहल केवल गाय को सम्मान देने तक सीमित नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और सनातन जीवन मूल्यों को पुनर्स्थापित करने का आह्वान भी है। स्वामीजी की यह बात ध्यान देने योग्य है कि “गाय बचेगी तो धर्म बचेगा”, क्योंकि गाय न केवल कृषि, पर्यावरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, बल्कि यह धार्मिक आस्था और आत्मिक संतुलन की प्रतीक भी है।

आज जब समाज पाखंड, दिखावे और उपभोक्तावाद की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में यह निर्णय एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर संकेत करता है। यह सिर्फ महाराष्ट्र के लिए नहीं, पूरे भारत के लिए एक प्रेरणास्पद दृष्टांत है।

हमें यह समझना होगा कि धर्म की रक्षा केवल अनुष्ठानों से नहीं, बल्कि आचरण से होती है। गाय का सम्मान, संरक्षण और संवर्धन — यह हमारी संस्कृति को जीवंत बनाए रखने का आधार है। एकनाथ शिंदे ने यह निर्णय लेकर न केवल परंपरा का सम्मान किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी एक सशक्त सांस्कृतिक संदेश दिया है।

यह कदम किसी एक राज्य की नहीं, पूरे राष्ट्र की आत्मा को स्पर्श करता है। यदि भारत को सांस्कृतिक महाशक्ति बनाना है, तो ऐसे निर्णयों को केवल सम्मान नहीं, समर्थन और अनुकरण भी मिलना चाहिए।

शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप

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