-क्रिकेट सट्टेबाजी, एविएटर, कलर प्रेडिक्शन और फैंटेसी गेम्स की आड़ में युवाओं की बर्बादी
-करोड़ों की टैक्स चोरी
शरद कटियार
नई दिल्ली: देशभर में ऑनलाइन गेमिंग (online gaming) की चकाचौंध के पीछे एक गहरी और खतरनाक सच्चाई छिपी है। क्रिकेट सट्टेबाजी, एविएटर गेम, कलर प्रेडिक्शन और फैंटेसी गेम्स (fantasy games) की आड़ में न केवल युवाओं को बर्बादी की ओर धकेला जा रहा है, बल्कि बड़े स्तर पर टैक्स चोरी (tax evasion) और आर्थिक अपराध को भी अंजाम दिया जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, कई ऑनलाइन गेमिंग कंपनियां एक्टर्स और सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स को मोटी रकम देकर इन खेलों का प्रचार करवा रही हैं। ये कंपनियां 22% से अधिक कमीशन देकर अपने प्लेटफॉर्म्स को प्रोमोट करवा रही हैं। वहीं आम जनता, विशेषकर युवा वर्ग, इन झूठे सपनों के जाल में फंसकर अपना पैसा, समय और भविष्य दोनों गंवा रहे हैं।
कैसे चलता है ये गोरखधंधा?
फैंटेसी क्रिकेट, एविएटर गेम और कलर प्रेडिक्शन गेम दिखने में तो सामान्य खेल लगते हैं, लेकिन इनके पीछे भारी सट्टेबाजी और जुए की स्कीम चल रही होती है। युवा शुरुआत में कम निवेश में ज्यादा मुनाफे का सपना देखकर फंसते हैं, और फिर अपना सब कुछ गंवा बैठते हैं।
गरीब और बेरोजगार लोगों से उनके बैंक अकाउंट किराए पर लेती हैं। इन खातों में करोड़ों रुपए का टर्नओवर दिखाया जाता है। खाताधारक को 4-5% का कमीशन मिलता है और असली पैसा कंपनियां निकाल लेती हैं। इससे न तो कंपनियों पर कोई सीधा टैक्स बनता है, न ही ट्रांजैक्शन ट्रेस हो पाते हैं। कंपनियां सारे ट्रांजैक्शन रेंटल अकाउंट्स के जरिए करती हैं। जिससे आयकर विभाग और अन्य एजेंसियां भी ट्रांजैक्शन को पकड़ नहीं पातीं। इस तरह खुलेआम टैक्स चोरी की जा रही है।
बड़ी संख्या में ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म दुबई, सिंगापुर, मॉरीशस और अन्य टैक्स हेवन देशों से ऑपरेट हो रहे हैं। जिससे भारतीय कानून उन पर सीधे कार्रवाई नहीं कर सकता। चौंकाने वाले आंकड़े देखें तो देशभर में सक्रिय ऑनलाइन गेमिंग कंपनियां 1,500+ प्रतिदिन गेमिंग प्लेटफॉर्म्स पर ट्रांजैक्शन ₹800 करोड़ (अनुमानित) फैंटेसी/कलर प्रेडिक्शन गेम से बर्बाद हुए युवा 1.2 करोड़ (अनुमानित) टैक्स चोरी की संभावित राशि ₹10,000 करोड़+ प्रति वर्ष रेंटल अकाउंट्स से जुड़े व्यक्ति 5 लाख से अधिक हैँ।
जहां देश के बड़े हिस्से में युवाओं को डिजिटल इंडिया के नाम पर जोड़ने की कोशिश की जा रही है, वहीं ये ऑनलाइन गेमिंग कंपनियां उन्हें मानसिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से बर्बाद कर रही हैं। अब तक ना तो कोई ठोस रेगुलेशन है, ना ही कोई सख्त निगरानी प्रणाली। कई बार शिकायतें आयकर विभाग या साइबर सेल तक पहुंचती हैं, लेकिन अकसर प्रभावशाली नेटवर्क के चलते जांच आगे नहीं बढ़ पाती।
साइबर विशेषज्ञ का कहना है:
“रेंटल अकाउंट के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग का ये तरीका नया नहीं है, लेकिन ऑनलाइन गेमिंग के माध्यम से इसे बड़ी सफाई से किया जा रहा है। सरकार को तुरंत कार्रवाई कर सख्त कानून लाने की जरूरत है।”
मनोचिकित्सक बताती हैं:
”कलर प्रेडिक्शन और एविएटर जैसे गेम्स युवाओं में जुए की लत पैदा कर रहे हैं। ये गेम न केवल मानसिक रूप से नुकसानदायक हैं, बल्कि परिवारिक और सामाजिक ढांचे को भी तोड़ रहे हैं।” जनमानस की मांगें हैँ,ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म्स पर कड़ा नियंत्रण। सभी गेम्स का आर्थिक और साइबर ऑडिट अनिवार्य।रेंटल अकाउंट से जुड़े ट्रांजैक्शन की जांच।सोशल मीडिया पर गेम प्रमोशन पर प्रतिबंध।जुए की श्रेणी में आने वाले सभी गेम्स पर बैन।
डिजिटल भारत में ऑनलाइन गेमिंग के नाम पर चल रहा ये गोरखधंधा न केवल करोड़ों युवाओं को बर्बादी की ओर ले जा रहा है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रहा है। अब वक्त आ गया है कि सरकार, एजेंसियां और समाज इस विषय पर गंभीर होकर सख्त कदम उठाएं।