– वैद्य के.पी. सिंह शाक्य, आयुर्वेदाचार्य
भारत की वन औषधियों में राजवृक्ष का एक विशेष स्थान है। इसे आम भाषा में अमलतास के नाम से भी जाना जाता है। यह सुंदर पुष्पों से सजा पेड़ सिर्फ शोभा नहीं बढ़ाता, बल्कि आयुर्वेद में कई असाध्य रोगों का समाधान भी है। इसकी सहज उपलब्धता और बहुआयामी औषधीय गुण इसे हर घर के लिए उपयोगी बनाते हैं।
मार्च-अप्रैल में इस वृक्ष में सुंदर पुष्प और हरे ताजे पत्ते आते हैं। इसके बाद लगभग डेढ़ से दो फीट लंबी फलियाँ निकलती हैं, जो पूरे वर्ष पेड़ पर बनी रहती हैं।
फल की मज्जा में पाए जाते हैं:
एन्थ्रोक्विनोन, शर्करा, पिच्छल द्रव्य, ग्लूटोन, पेक्टिन, कैल्शियम ऑक्सेलेट, क्षार, रंजक द्रव्य, निर्यास व जल।
कांडत्वक में टैनिन और मूलत्वक में फ्लोवेफिन और एन्थ्रोक्विनोन पाए जाते हैं। इसके पत्तों व पुष्पों में ग्लाइकोसाइड्स की भी उपस्थिति होती है।
राजवृक्ष की प्रकृति शीतल, स्निग्ध, मधुर और मृदु है। यह औषधि शरीर से विकारों को निकालने वाली तथा अनेक रोगों को नष्ट करने वाली मानी जाती है। इसका प्रभाव विशेषतः ज्वर, हृदय रोग, रक्तपित्त, वात रोग, और पाचन से संबंधित समस्याओं पर अत्यधिक लाभकारी होता है।
यह वृक्ष सम्पूर्ण भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है:राजवृक्ष, हेमपुष्प, बाहवा, धन बहेड़ा, अमलतास, सोनास, गिर्दनली, खियासमृबर आदि।
उपयोग और रोगों में लाभ
राजवृक्ष का विभिन्न रोगों में विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जाता है: राजवृक्ष न केवल हमारी संस्कृति में सौंदर्य और पवित्रता का प्रतीक है, बल्कि आयुर्वेदिक चिकित्सा में एक शक्तिशाली औषधि भी है। इसके नियमित और उचित प्रयोग से अनेक पुराने रोगों का समाधान पाया जा सकता है। आज की जीवनशैली में आयुर्वेदिक ज्ञान को अपनाकर हम स्वयं को और समाज को रोगमुक्त बना सकते हैं।