शिमला: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री (Former Chief Minister) और विपक्ष के नेता जय राम ठाकुर ने कक्षा एक से आठ तक पढ़ाने वाले शिक्षकों की सेवा जारी रखने और पदोन्नति के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) अनिवार्य करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राज्य सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया है। जय राम ठाकुर ने आज शनिवार को मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित कई राज्य इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएँ दायर कर चुके हैं, लेकिन हिमाचल प्रदेश ने अभी तक कोई पहल नहीं की है। नतीजतन, राज्य के हजारों शिक्षक अपने भविष्य को लेकर तनाव और अनिश्चितता में हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री ने बताया कि 1 सितंबर को अंजुमन इशात-ए-तालीम ट्रस्ट बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि देश भर के सभी कार्यरत शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए टीईटी पास करना अनिवार्य है। विपक्ष के नेता ने कहा कि इस फैसले से हिमाचल प्रदेश के हजारों शिक्षकों सहित देश भर के लाखों शिक्षक प्रभावित हुए हैं। राज्य के शिक्षक संघ मांग कर रहे हैं कि सरकार अन्य राज्यों के उदाहरण का अनुसरण करे और उनके हितों की रक्षा के लिए तुरंत पुनर्विचार याचिका दायर करे।
उन्होंने आरोप लगाया कि फैसले के तीन हफ़्ते बीत जाने के बावजूद, हिमाचल सरकार और शिक्षा विभाग कोई ठोस कदम उठाने में विफल रहे हैं। उनके अनुसार, इस निष्क्रियता ने शिक्षकों की नौकरियों को खतरे में डाल दिया है और शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।
ठाकुर ने यह भी याद दिलाया कि पिछली भाजपा सरकार के दौरान, राज्य ने शिक्षकों के नियमितीकरण के लिए सर्वोच्च न्यायालय में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी और लगभग 12,000 शिक्षकों को राहत दिलाने में सफल रहा था। उन्होंने वर्तमान सरकार से उसी भावना से कार्य करने और शिक्षकों की चिंताओं का अविलंब समाधान करने का आग्रह किया।