भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की ताजा घोषणा में रेपो रेट को लगातार 11वीं बार 6.50% पर स्थिर रखने का निर्णय लिया गया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब वैश्विक और घरेलू आर्थिक स्थितियाँ चुनौतीपूर्ण बनी हुई हैं। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस फैसले को प्राइस स्टेबिलिटी और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखने की प्रतिबद्धता बताया।
रेपो रेट को स्थिर रखने और कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) में कटौती जैसे कदम यह दर्शाते हैं कि आरबीआई मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखते हुए आर्थिक विकास को गति देने की रणनीति पर काम कर रहा है। इस संपादकीय में हम आरबीआई के इन फैसलों के आर्थिक प्रभाव, उनके तर्क, और मौद्रिक नीति की दिशा को समझने का प्रयास करेंगे।
रेपो रेट वह दर है, जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक बैंकों को अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है। यह बैंकिंग प्रणाली की कर्ज वितरण नीति और अंततः उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को प्रभावित करता है।
रेपो रेट को 6.50% पर स्थिर रखने के निर्णय के पीछे कई प्रमुख कारण हो सकते हैं: वर्तमान में महंगाई दर को संतुलित बनाए रखना आरबीआई की प्राथमिकता है। एमपीसी ने अनुमान लगाया है कि चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में महंगाई दर 5.7% और चौथी तिमाही में 4.5% रहेगी। ऐसे में रेपो रेट को स्थिर रखने से महंगाई के दबाव को कम करने में मदद मिल सकती है।वैश्विक अनिश्चितताओं और आपूर्ति श्रृंखला के व्यवधानों के बीच आर्थिक स्थिरता बनाए रखना आवश्यक है। रेपो रेट स्थिर रहने से बाजार में अनावश्यक अस्थिरता नहीं आएगी। आरबीआई गवर्नर ने यह भी कहा कि प्राइस स्टेबिलिटी क्रय शक्ति को प्रभावित करती है। रेपो रेट में बदलाव न करके आरबीआई यह सुनिश्चित कर रहा है कि उपभोक्ताओं और व्यवसायों को वित्तीय स्थिरता का लाभ मिले।सीआरआर (कैश रिजर्व रेश्यो) वह प्रतिशत है, जो बैंकों को अपनी कुल जमा का एक हिस्सा आरबीआई के पास रिजर्व के रूप में रखना होता है। इस बार आरबीआई ने सीआरआर में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर इसे 4% कर दिया है। सीआरआर में कटौती से बैंकों के पास अतिरिक्त नकदी उपलब्ध होगी, जिससे वे अधिक ऋण प्रदान कर सकेंगे। लिक्विडिटी बढ़ने से बैंकों को उपभोक्ताओं और व्यवसायों को कर्ज देने में आसानी होगी, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बल मिलेगा। छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) को कर्ज सुलभ होगा, जो रोजगार सृजन और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।आरबीआई की अन्य घोषणाओं में स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (एसडीएफ) को 6.25% पर स्थिर रखना और बैंक रेट व मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) को 6.75% पर बनाए रखना शामिल है। ये घोषणाएँ मौद्रिक नीति की स्थिरता और विकास के प्रति आरबीआई की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
चालू वित्त वर्ष में महंगाई दर 5% से नीचे रहने की संभावना है। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए यह अनुमान 4% के करीब रखा गया है। यह दिखाता है कि आरबीआई का लक्ष्य है कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहे और आम जनता पर इसका दबाव कम हो।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि सस्टेनेबल प्राइस स्टेबिलिटी आर्थिक विकास की नींव को मजबूत कर सकती है। यह दृष्टिकोण दीर्घकालिक विकास के लिए आवश्यक है।
आरबीआई की मौद्रिक नीति वर्तमान में “स्थिरता और संतुलन” की ओर उन्मुख है। इस नीति के तहत:महंगाई और विकास के बीच संतुलन: आरबीआई महंगाई को नियंत्रण में रखते हुए विकास को गति देने की कोशिश कर रहा है। वैश्विक स्तर पर ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव, तेल की कीमतों में अस्थिरता, और मुद्रा बाजार की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आरबीआई अपनी नीतियों को संतुलित कर रहा है।रेपो रेट स्थिर रखने और सीआरआर में कटौती जैसे कदम अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाते हैं।रेपो रेट स्थिर रहने से होम लोन और अन्य ऋणों की ईएमआई पर कोई अतिरिक्त भार नहीं पड़ेगा, जो उपभोक्ताओं के लिए राहत की बात है। सीआरआर में कटौती से बैंकों को अधिक लिक्विडिटी मिलेगी, जिससे लोन सुलभता में वृद्धि होगी। छोटे और मध्यम उद्यम (एसएमई) को कर्ज मिलने में आसानी होगी, जिससे रोजगार सृजन और आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलेगा।
आरबीआई की मौद्रिक नीति ने स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं:जैसे,अमेरिका और यूरोपीय देशों में आर्थिक मंदी की संभावना, वैश्विक तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव, और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं।प्राइस स्टेबिलिटी बनाए रखना आसान नहीं होगा, खासकर जब खाद्य और ऊर्जा की कीमतें अस्थिर हों।निजी क्षेत्र के निवेश में वृद्धि के लिए नीतिगत स्थिरता के साथ-साथ संरचनात्मक सुधारों की भी आवश्यकता होगी।
आरबीआई को इन चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी नीतियों को लचीला और समायोज्य बनाए रखना होगा।
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति का रेपो रेट को 6.50% पर स्थिर रखना और सीआरआर में कटौती का निर्णय एक संतुलित और दूरदर्शी दृष्टिकोण का परिचायक है। यह निर्णय महंगाई और विकास के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है।
आरबीआई की यह रणनीति न केवल बैंकों और व्यवसायों के लिए फायदेमंद है, बल्कि आम जनता के लिए भी राहत लेकर आती है। मौद्रिक नीति की इस दिशा का दीर्घकालिक प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास को सुनिश्चित करेगा।
वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और लिक्विडिटी में सुधार के साथ-साथ मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखना आरबीआई की प्राथमिकताओं में से एक है। यदि इन नीतियों का क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से किया जाता है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक चुनौतियों के बावजूद मजबूत बनाए रखने में मदद करेगा।