=जिला विद्यालय निरीक्षक और लिपिक राजेश अग्निहोत्री राजीव यादव ने मजिस्ट्रेट की जांच को दवा निदेशक को गुमराह कर उच्च न्यायालय को किया भ्रमित
फर्रुखाबाद। शिक्षा जगत से एक सनसनीखेज खुलासा सामने आया है। जिले के जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) नरेंद्र पाल सिंह पर आरोप है कि उन्होंने अपने ही निदेशक, माध्यमिक शिक्षा परिषद को गुमराह कर कुख्यात अपराधी व वकील अवधेश मिश्रा को राहत देने का खेल रचा।
जानकारी के अनुसार, तत्कालीन जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह ने थाना नवाबगंज क्षेत्र स्थित एस.के.एम. इंटर कॉलेज, चांदपुर की शिकायतों पर गंभीरता से जांच बैठाई थी। डीएम के निर्देश पर गठित त्रिस्तरीय जांच समिति — जिसमें कायमगंज एसडीएम सुनील कुमार, जिला विद्यालय निरीक्षक आदर्श त्रिपाठी और बीएसए लालजी यादव शामिल थे — ने कॉलेज में फर्जीवाड़े का बड़ा खुलासा किया था।
जांच में पाया गया था कि अवधेश मिश्रा ने एक ही भवन में एस.के.एम. इंटर कॉलेज और कृष्णा पब्लिक स्कूल दोनों के लिए अलग-अलग मान्यता ले रखी थी। रिपोर्ट में यह भी दर्ज किया गया कि कॉलेज भवन का कुछ भाग अवैध रूप से निर्मित है। समिति ने इन दोनों विद्यालयों की मान्यता को अवैध करार दिया था। साथ ही नियुक्ति शासनादेश का भी प्रबंधक अवधेश मिश्रा ने घोर उल्लंघन करते हुए कॉलेज को संचालन करने वाली संस्था कृष्णा मिश्रा शिक्षा प्रसार समिति में कोषाध्यक्ष अपनी पत्नी रीता पाठक मिश्रा को नियम विरुद्ध तरीके से एसकेएम इंटर कॉलेज का प्रधानाचार्य बनाया था जो कि घोर धांधली और जालसाजी थी।
जांच रिपोर्ट के आधार पर जिलाधिकारी ने अपर मुख्य सचिव माध्यमिक शिक्षा एवं निदेशक माध्यमिक शिक्षा परिषद को कॉलेज की मान्यता निरस्त करने का पत्र भेजा था। साथ ही, यह भी लिखा गया था कि अवधेश मिश्रा सरकारी कार्यों में बाधा डालने का आदी व्यक्ति है।
इसके बाद जिलाधिकारी ने तत्कालीन डीआईओएस को विद्यालय प्रबंधक अवधेश मिश्रा के खिलाफ जालसाजी का मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए। लेकिन कार्रवाई होते देख अवधेश मिश्रा और उनकी पत्नी, प्रधानाचार्य रीता पाठक मिश्रा ने सोशल मीडिया व उच्च अधिकारियों को पत्र लिखकर आत्मदाह की धमकियां देनी शुरू कर दीं। अवधेश मिश्रा ने तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक डॉक्टर आदर्श त्रिपाठी के खिलाफ कार्रवाई से बचने के लिए इटावा में छेड़खानी की प्रार्थना पत्र डलवा दी थी जिससे डी आई ओ एस त्रिपाठी बुरी तरह घबरा गए थे।
मामले की गंभीरता देखते हुए डीएम संजय कुमार सिंह ने एसपी अशोक कुमार मीणा को पूरे फर्जीवाड़े की जांच का आदेश दिया। पुलिस ने जांच के बाद रिपोर्ट में साफ लिखा कि यह मामला डीआईओएस कार्यालय की मिलीभगत का परिणाम है और शिक्षा विभाग से ही कार्रवाई अपेक्षित है।
डीएम ने दिनांक 6 मार्च 2022 को पत्रांक 2445/ओएसडी-22 के जरिए डीआईओएस को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। लेकिन यहां डीआईओएस कार्यालय के लिपिक राजेश अग्निहोत्री ने पूरा खेल पलट दिया। आरोप है कि उन्होंने जानबूझकर पूरी फाइल ही गायब कर दी।
उधर, उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अवधेश मिश्रा ने संयुक्त निदेशक द्वारा की गई कार्रवाई को औचित्यहीन बताया। अदालत ने निदेशक माध्यमिक शिक्षा को स्वयं कार्रवाई करने के निर्देश दिए। निदेशक ने जब दोबारा डीआईओएस नरेंद्र पाल सिंह से रिपोर्ट मांगी, तब तक मामला “सेटिंग-गठजोड़” का शिकार हो चुका था।
सूत्रों के अनुसार, नरेंद्र पाल सिंह ने लिपिक राजीव यादव शेखर की मदद से पुरानी त्रिस्तरीय जांच रिपोर्ट को पलटवाकर नई रिपोर्ट निदेशक को भेज दी, जिसमें अपराधी अवधेश मिश्रा को क्लीन चिट दे दी गई और मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
शिक्षा विभाग में चल रहे इस पूरे ‘फर्जीवाड़े और सांठगांठ के खेल’ ने जनपद में हड़कंप मचा दिया है। सूत्र बताते हैं कि डीआईओएस कार्यालय में भारी भ्रष्टाचार का नेटवर्क काम कर रहा है, जो शिक्षा के नाम पर अवैध मान्यता, फर्जी स्कूल संचालन और दस्तावेजों में हेराफेरी कर रहा है।
अब देखना यह होगा कि शासन स्तर से इस बड़ी प्रशासनिक गड़बड़ी और भ्रष्टाचार के घोटाले पर क्या कार्रवाई होती है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या डीआईओएस नरेंद्र पाल सिंह और अपराधी अवधेश मिश्रा की मिलीभगत पर आखिरकार शिकंजा कसेगा या यह मामला भी किसी और फाइल की तरह गायब कर दिया जाएगा?






