दबंग वकीलों पर विशेष अभियान की आवश्यकता, कानून की देवी की प्रतिष्ठा बचाना जरूरी
फर्रुखाबाद में पिछले कई वर्षों से एक अघोषित संकट खड़ा है। झूठे मुकदमों और दबंग वकीलों की सक्रियता ने आम जनता को मानसिक भय, संपत्ति हड़पने और सामाजिक असुरक्षा के बड़े संकट में डाल दिया है। स्थानीय लोगों की मानें तो कुछ दबंग वकील केवल संपत्ति हड़पने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन्होंने अधिकारियों, पत्रकारों और नेताओं तक को निशाना बनाया है। इनके दबंगपन और फर्जी मुकदमों की आड़ में कानून की देवी तक कलंकित हुई है।
पिछले चार सालों में केवल एक वकील ने 17 कीमती संपत्तियों का बैनामा करवा कर करोड़ों रुपये की संपत्तियों पर कब्जा जमा लिया। यह आंकड़ा न केवल प्रशासनिक असंवेदनशीलता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस तरह कुछ दबंग लोग कानून और व्यवस्था का खुलेआम दुरुपयोग कर रहे है।
लखनऊ की अदालत ने हाल ही में ऐसे ही वकील परमानन्द गुप्ता के खिलाफ 29 झूठे मुकदमों में सख्त कार्रवाई करते हुए उम्रकैद और पांच लाख रुपये का जुर्माना सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि गुप्ता की गतिविधियां केवल संपत्ति हड़पने तक सीमित नहीं थीं, बल्कि इससे आम लोगों की सुरक्षा और जीवन पर गंभीर खतरा उत्पन्न हुआ।
विशेषज्ञों का कहना है कि परमानन्द गुप्ता जैसे वकीलों ने कानून की देवी को कलंकित किया और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई। कानून की देवी का सम्मान तब तक सुरक्षित नहीं रह सकता, जब तक प्रशासन और कानूनी संस्थान ऐसे दबंगों पर सख्त कार्रवाई नहीं करते।
प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया की नियमावली के अनुसार पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य सत्य और निष्पक्ष रिपोर्टिंग, आम जनता के अधिकारों की रक्षा और कानून के पालन को सुनिश्चित करना है। लेकिन ऐसे मामलों में दबंग वकीलों के दबाव के कारण पत्रकार और आम नागरिक दोनों ही भयभीत रहते हैं।
लॉ एंड ऑर्डर का उल्लंघन: झूठे मुकदमे, धमकियां और दबाव के माध्यम से संपत्ति हड़पना, न्यायपालिका की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना और आम जनता के अधिकारों का हनन करना केवल कानूनी अपराध नहीं है, बल्कि समाज के मूल्य और विश्वास के लिए खतरा है।
फर्रुखाबाद के नागरिक अब सरकार और पुलिस से मांग कर रहे हैं कि ऐसे दबंग वकीलों के खिलाफ ऑपरेशन “महाकाल” जैसे विशेष अभियान चलाए जाएँ। उनका कहना है कि जनता को झूठे मुकदमों और संपत्ति हड़पने के डर से मुक्त किया जाना चाहिए,
एक स्थानीय व्यापारी ने कहा, “चार साल में 17 संपत्तियों का बैनामा करवाना केवल वकील की चालाकी नहीं, बल्कि सिस्टम की गंभीर कमी का संकेत है। अगर तुरंत कार्रवाई नहीं होती, तो आम जनता का न्याय पर भरोसा पूरी तरह टूट जाएगा। यह केवल संपत्ति का मामला नहीं है, बल्कि हमारे समाज में न्याय की स्थापना और कानून के प्रति विश्वास का मुद्दा है।”
स्थानीय लोगों का कहना है कि वकीलों ने फर्जी मुकदमों और धमकियों के जरिए न केवल संपत्ति हड़पने की कोशिश की, बल्कि मानसिक दबाव और सामाजिक भय पैदा किया। कई बार संपत्ति के मालिकों को अदालत में झूठे आरोपों के डर से संपत्ति छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में सख्त कानूनी कार्रवाई और प्रशासन की सक्रियता बेहद जरूरी है। वे इसे ऑपरेशन ‘महाकाल’ के रूप में लागू करने की सलाह दे रहे हैं, ताकि दबंग वकीलों और उनके गुर्गों पर कड़ी कार्रवाई हो और आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो।
विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि कानून की देवी का सम्मान तभी बना रहेगा जब प्रशासन और न्यायपालिका मिलकर जनता के अधिकारों की रक्षा करें। केवल अदालत का भरोसा पर्याप्त नहीं है। प्रशासन और कानून प्रवर्तन की तत्परता ही जनता के विश्वास को बनाए रखने का उपाय है।
कानून और प्रशासन में सुधार की आवश्यकता
फर्रुखाबाद में परमानन्द गुप्ता जैसे वकीलों की सक्रियता यह स्पष्ट करती है कि सिस्टम में सुधार की सख्त आवश्यकता है। झूठे मुकदमों, दबंगपन और संपत्ति हड़पने के ऐसे मामलों को रोकने के लिए प्रशासन और न्यायपालिका को मिलकर कदम उठाने होंगे।
सख्त कानूनी कार्रवाई: झूठे मुकदमों और दबंग व्यवहार के खिलाफ तुरंत और प्रभावी कार्रवाई।
जनता की सुरक्षा: दबंग वकीलों और उनके गुर्गों से आम नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
प्रशासनिक तत्परता: अदालत की कार्रवाई के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन और पुलिस को सक्रिय होना होगा।
फर्रुखाबाद में झूठे मुकदमों के मामलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कानून और व्यवस्था केवल कागजों तक सीमित नहीं रह सकती। जनता का विश्वास तभी सुरक्षित रहेगा जब दबंग वकीलों और फर्जी मुकदमों पर कड़ी कार्रवाई होगी।
ऑपरेशन ‘महाकाल’ जैसी पहल से न केवल दबंग वकीलों को रोका जा सकता है, बल्कि आम जनता का न्याय और सुरक्षा का भरोसा भी मजबूत किया जा सकता है। कानून की देवी का सम्मान और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा तभी सुरक्षित रहेगी, जब हर नागरिक को न्याय दिलाने के लिए सिस्टम सक्रिय और सशक्त होगा।
फर्रुखाबाद के मामले यह याद दिलाते हैं कि सिर्फ अदालत का भरोसा पर्याप्त नहीं, बल्कि प्रशासन और कानून प्रवर्तन की तत्परता, कानून की देवी का सम्मान और प्रेस की सतर्कता भी उतनी ही जरूरी है। झूठे मुकदमों और दबंगपन के ऐसे मामलों को रोकना अब प्राथमिकता बननी चाहिए।