फतेहगढ़।
फतेहगढ़ कचहरी का एक कथित नॉन-प्रैक्टिस वकील और खुद को सामाजिक कार्यकर्ता और तांत्रिक बताने वाला व्यक्ति — अवधेश मिश्रा — आज पूरे पुलिस और प्रशासनिक तंत्र के लिए सिरदर्द बन गया है।
कानून की आड़ में अफसरों को डराना, रोज़ शिकायतें भेजना और खुद पर दर्ज मुकदमों से बचने के लिए सिस्टम को अपने इशारों पर नचाना — यही बन चुका है इस व्यक्ति का हथियार।
सूत्रों के मुताबिक अवधेश मिश्रा के खिलाफ जघन्य धाराओं के तहत कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं।
लेकिन इन मुकदमों से बचने के लिए वह पुलिस को शिकायतों के जाल में उलझा देता है।
जो अधिकारी या कर्मचारी उसके खिलाफ जांच बढ़ाने की कोशिश करते हैं — वह अगले ही दिन उनके नाम से प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, डीजीपी और मानवाधिकार आयोग तक शिकायत भेज देता है।
कभी एल आई यू प्रभारी रहीं श्रीमती प्रीति यादव, कभी नवाबगंज थानाध्यक्ष रहे आर.के. शर्मा, तो कभी तत्कालीन पुलिस अधीक्षक डॉ. अनिल मिश्रा और अशोक कुमार मीणा, विकास बाबू।
अवधेश मिश्रा की कलम से कोई भी सुरक्षित नहीं रहा।
यहां तक कि जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह, जेल अधीक्षक विजय विक्रम सिंह, क्षेत्राधिकारी नगर मन्नीलाल गौड़, और युवा केंद्र अधिकारी तनवीर अहमद तक उसके निशाने पर रहे हैं।
पुलिस के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया —
> “हर दिन कोई नई शिकायत, कोई नया इल्ज़ाम। अगर जवाब दो तो धमकी मिलती है कि तुम्हारा मामला राष्ट्रपति तक जाएगा।”
अवधेश मिश्रा की कार्यप्रणाली इतनी चालाकी भरी है कि उसने पुलिस विभाग को अपने बचाव का हथियार बना लिया है।
जब कभी कोई मामला उसके खिलाफ दर्ज होता है, वह तुरंत उच्च अधिकारियों को लिखकर संबंधित जांच अधिकारी को ‘पक्षपाती’ या ‘भ्रष्ट’ बता देता है।
इससे जांच अटक जाती है और वह आराम से खुद को “सताया गया नागरिक” बताकर प्रचार करता रहता है।
स्थानीय वकीलों का कहना है कि अवधेश मिश्रा वास्तव में कोर्ट-कचहरी की पैरवी नहीं करता, बल्कि खुद को “तांत्रिक ” बताकर लोकप्रियता और दबाव की राजनीति खेलता है।
सोशल मीडिया पर वह अक्सर अधिकारियों के खिलाफ झूठी या तोड़-मरोड़कर दी गई सूचनाएँ साझा करता है, जिससे सरकारी कर्मचारियों की छवि को नुकसान होता है।
लगातार शिकायतों और फर्जी आरोपों से त्रस्त प्रशासन अब सख्त हो चला है।
नवाबगंज पुलिस ने उसकी गतिविधियों की विस्तृत निगरानी और चरित्र सत्यापन रिपोर्ट तैयार की है।
अवधेश मिश्रा का यह मामला प्रशासनिक तंत्र के लिए एक उदाहरण है कि कानून के दुरुपयोग से कितना बड़ा तंत्रिकीय संकट खड़ा हो सकता है।
जनसेवा और अधिकारों की आड़ में जब कोई व्यक्ति व्यक्तिगत प्रतिशोध चलाता है, तो वह सिर्फ अधिकारियों को नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है।






