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Monday, June 23, 2025

फर्रुखाबाद: पांचाल घाट पर चलती जाति विशेष की मोटर बोट, मर रहे जलजंतु—गंगा की पवित्रता से खिलवाड़ पर प्रशासन अब जागा

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हरिद्वार से संगम तक प्रतिबंध, पर पांचाल घाट पर खुलेआम हो रहा नियमों का उल्लंघन; डीएम ने लिया संज्ञान

शरद कटियार

फर्रुखाबाद। गंगा नदी को मां का दर्जा देने वाले देश में उसके आंचल में पलने वाले निर्दोष जलजंतुओं और मछलियों की हत्या जब खुलेआम हो, और फिर भी शासन-प्रशासन मौन रहे—तो यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर गंगा की रक्षा के नाम पर चल रहे अभियानों का क्या औचित्य है?

हरिद्वार से संगम तक मोटर बोट पर प्रतिबंध, मगर फर्रुखाबाद में छूट!

उत्तराखंड के हरिद्वार से लेकर प्रयागराज संगम तक गंगा नदी में मोटर बोट के संचालन पर कड़े प्रतिबंध हैं। कारण साफ है—इन बोट्स के पंखे (प्रॉपेलर) जल के भीतर चलने वाले जीवों, विशेषकर मछलियों, कछुओं और अन्य जीवों को गंभीर क्षति पहुंचाते हैं। नमामि गंगे योजना के दिशा-निर्देशों में भी यह साफ तौर पर दर्ज है कि गंगा में केवल नॉन मोटराइज्ड बोट या पारंपरिक नावें ही चलनी चाहिए।

पांचाल घाट पर जाति विशेष की मोटर बोटें कर रही गंगा को छलनी

बावजूद इसके, फर्रुखाबाद के पांचाल घाट के आसपास जाति विशेष से जुड़े कुछ लोगों द्वारा मोटर बोटों का खुला संचालन किया जा रहा है। यह न सिर्फ गंगा के पर्यावरणीय संतुलन के खिलाफ है, बल्कि स्थानीय सामाजिक समरसता और गंगा-जमुनी तहजीब को भी ठेस पहुंचाने वाला कदम माना जा रहा है। विडंबना यह है कि इस ओर न तो जल निगम ने कोई कार्रवाई की और न ही नाव संचालन विभाग ने संज्ञान लिया।

जानकारों का मानना है कि मोटर बोट्स के पंखे जब पानी में चलते हैं, तो उनसे पैदा होने वाली ध्वनि और कंपन से हजारों जल प्राणी घायल या मृत हो जाते हैं। यह मानवता के विरुद्ध सीधा अपराध है, जिसे धार्मिक आस्था की आड़ में दबाया नहीं जा सकता।

जिलाधिकारी ने लिया संज्ञान

जब इस गंभीर मामले की जानकारी जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी को दी गई, तो उन्होंने इसे “मानवी दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील” बताते हुए तत्काल जांच और कार्यवाही का आश्वासन दिया है। डीएम ने कहा, “गंगा सिर्फ आस्था नहीं, जीवनदायिनी है। इसमें रहने वाले जीवों की सुरक्षा भी हमारी नैतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी है।”

जब जिले में गंगा-जमुनी तहजीब को लेकर छोटी-छोटी बातों पर राजनीति गर्म हो जाती है, तो गंगा की गोद में हो रहे जीवों के नरसंहार पर चुप्पी क्या दर्शाती है?

अब जबकि जिलाधिकारी ने गंभीरता दिखाई है, सवाल है—क्या प्रशासन इन बोट मालिकों पर कार्यवाही करेगा? क्या गंगा फिर से अपने जलजंतुओं की मां बन पाएगी या यह मुद्दा भी ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

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