– कादरीगेट थाना पहले से खाली, कायमगंज कोतवाली भी हुईं प्रभारी विहीन
– दो दर्जन से अधिक इंस्पेक्टर जांचों के कारण थाना प्रभारी पद पर तैनात नहीं
– माफिया गैंगों पर ठोस कार्रवाई पर उठ रहे सवाल।
फर्रुखाबाद: Farrukhabad जिले की पुलिस लाइन में तैनात इंस्पेक्टरों (police inspectors) की कथित कमी ने स्थानीय कानून-व्यवस्था की आधारभूत हालत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अंदरूनी सूत्रों और स्थानीय पुलिस कर्मियों के अनुसार, वर्तमान में जिले में प्रभारी निरीक्षकों (इंस्पेक्टर रैंक) की पूर्ति लगभग तीन दर्जन के आसपास है। इनमें से करीब दो दर्जन से अधिक इंस्पेक्टर ऐसे बताए जा रहे हैं जो किसी न किसी जांच, निलंबन या अनुशासनात्मक प्रक्रिया के चलते थाने का प्रभारी बनने की स्थिति में नहीं हैं।
इस कमी का सीधा असर 14 थानों की रोज़मर्रा की ड्यूटी पर पड़ा है — कई थानों में प्रभारी निरीक्षक को छोड़कर अन्य जिम्मेदारियों को बांटकर काम चलाया जा रहा है। कादरी गेट थाना इस सूची में प्रमुख है जहां अभी तक किसी स्थायी प्रभारी की तैनाती नहीं हो सकी। यही नहीं, ज़िला स्तर पर दर्ज नामी-गिरोहों, विशेषकर डी-2 गैंग के सरगना अनुपम दुबे और उसके भाइयों से जोड़कर बताये जाने वाले कुछ गैंगस्टरों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की अपेक्षा बनी हुई है, मगर फोर्स की कमी और जांच-पड़ताल से जुड़ी पेचीदगियों के कारण कार्रवाइयां धीमी दिखाई दे रही हैं।
पुलिस लाइन में खालीपन का असर सबसे ज़्यादा उन थानों पर पड़ रहा है जो सीमांत या संवेदनशील क्षेत्रों को कवर करते हैं। जहां एक ओर रोज़ाना की शिकायतें, पेट्रोलिंग और अपराध निगरानी का काम बराबर बढ़ गया है, वहीं कई जगहों पर प्रभारी निरीक्षक न होने के कारण निर्णय लेने, आपरेशन मॉनिटर करने और स्थानीय अपराधियों के साथ प्रभावी किस्म की टक्कर देने में कमी आ रही है।
गौरतलब है कि,सीमित इंस्पेक्टर-फोर्स के कारण एक ही इंस्पेक्टर पर कई ड्यूटी का बोझ पड़ जाता है जिससे फोर्स का परिचालन धीमा और अप्रभावी हो जाता है। परिणामस्वरूप गंभीर मामलों में समय पर कार्रवाई, संदिग्धों की गिरफ़्तारी और मॉनिटरिंग प्रभावित हो रही है।
डी-2 गैंग और नामी गिरोहों से जुड़े मामलों में सक्रियता की मांग नागरिक और पीड़ित पक्ष दोनों कर रहे हैं। ऐसे समय में जब विशिष्ट गिरोहों पर कार्रवाइयों की अपेक्षा है, थानेदारों और इन्क्वायरी से जुड़ी अनियमितताओं के कारण मोर्चे बंदी कमजोर पड़ जाती है। पुलिस तंत्र के भीतर मौजूद जांच-पड़ताल, ट्रांसफर-नियुक्ति और अनुशासनात्मक प्रक्रियाएँ अगर लंबी खिंचती हैं तो वह सीधे जमीनी निष्पादन को प्रभावित करती हैं।
जानकारों के अनुसार इस कमी के कई कारण हो सकते हैं — खाली पदों पर लंबित भर्ती प्रक्रिया, ट्रांसफर और प्रमोशन में देरी, चल रही जांचें या अनुशासनात्मक मामलों के कारण तैनाती में रोक, और संसाधनों की कमी। इन सभी ने मिलकर ऐसा माहौल तैयार किया है जहां कुछ चुनिंदा ही अधिकारी थानों की बागडोर संभालने पड़ने पर मजबूर हैं।
फर्रुखाबाद की पुलिस अधीक्षक श्रीमती आरती सिंह के समक्ष यह चुनौती तात्कालिक और निर्णायक हैँ, सीमित फोर्स में कैसे गुंडाराज और दहशत को नियंत्रित किया जाए। अनुभवी जन का कहना है,कि समस्या को केवल अधिकारिक तैनाती के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता, पड़ोस के जिलों से अस्थायी सहायक, विशेष पेट्रोलिंग योजनाएँ, मॉनिटरिंग टास्क फोर्स और तेजी से हुए ट्रांसफर/प्रमोशन निर्णय भी जरूरी हैं।
स्थानीय व्यापारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। कई लोग यह पूछ रहे हैं कि जब थानों पर मजबूत प्रभारी नहीं होंगे तो मामलों में प्राथमिकता कैसे होंगी,गंभीर अपराध, बड़ी- गैंग वार, और सामुदायिक सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी।
जिले की कानून-व्यवस्था उस मोड़ पर है जहाँ प्रशासनिक निर्णयों की तेज़ी और पारदर्शिता से ही जनता की सुरक्षा व शांति सुनिश्चित हो सकती है। तीन दर्जन के आसपास इंस्पेक्टरों की तैनाती और दो दर्जन से अधिक अधिकारियों की अनिश्चितता ने ज़मीनी पुलिसिंग को चुनौतीपूर्ण बना दिया है,और इस चुनौती से निपटना केवल पुलिस अधीक्षक का काम नहीं, बल्कि प्रशासन के तमाम स्तरों से सक्रियता और सहयोग मांगता है।


