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Thursday, October 9, 2025

खाद की लाइन में खड़ा किसान, बेबस अन्नदाता और संवेदनहीन सरकार

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प्रशांत कटियार

जब देश का अन्नदाता अपने खेतों में पसीना बहाने के बजाय, सरकारी खाद गोदामों के बाहर लाइन में खड़ा हो हाथ में खतौनी, जेब में आधार और आंखों में उम्मीद लिए तो समझिए कि व्यवस्था में कहीं गहरी दरार है। लखीमपुर खीरी के फरधान थाना क्षेत्र की शंकरपुर सहकारी समिति में बुधवार को जो हुआ, वो किसी एक जिले या केंद्र की कहानी नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में फैली खाद वितरण प्रणाली की संवेदनहीनता की शर्मनाक तस्वीर है।

किसानों ने तीन दिन से टोकन लिए इंतजार किया। लेकिन जब समिति सचिव समय से पहले ऑफिस बंद करके चलता बना, तो किसानों का धैर्य टूट गया। पुलिस आई, भीड़ को हटाने के लिए लाठीचार्ज किया लेकिन किसानों की उम्मीदों पर नहीं, उनकी पीठ पर बरसी लाठियां। एक मां और उसके बेटों पर बेरहमी से किए गए प्रहार सिर्फ शरीर पर नहीं, देश की आत्मा पर हमला हैं।

सरकार कहती है कि खाद की कोई कमी नहीं है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि एक एक बोरी खाद के लिए किसान को अपमान का घूंट पीना पड़ रहा है। जिस किसान को फसल की रक्षा के लिए 8 से 10 बोरी खाद चाहिए, उसे सरकारी फरमान सुनाया जा रहा है कि दो बोरी काफी हैं। ये कैसा मजाक है? क्या दिल्ली और लखनऊ की एसी कमरों में बैठकर खेती की जरूरतें तय की जाएंगी?

अब खाद की कीमतों की बात करें तो एनपीके की बोरी जो 1470 रुपए में मिलती थी, अब 1850 तक पहुंच चुकी है। न तो कीमत नियंत्रित हो रही है, न ही वितरण पारदर्शी है। ऊपर से पुलिस की लाठी उस किसान की पीठ पर पड़ रही है जो देश के लिए पेट भरने की व्यवस्था करता है।

जरा सोचिए, वो किसान जो मौसम की मार, मंडी की मार और बिचौलियों की लूट से हर साल दो चार होता है, अब खाद की किल्लत और प्रशासन की बर्बरता का शिकार बन गया है। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता डॉ. हीरालाल उन्हें चंद दिनों में पद से हटा दिया गया। सवाल ये नहीं कि उन्हें क्यों हटाया गया, सवाल ये है कि क्या किसानों के पक्ष में बोलना अब अपराध हो गया है, आज अन्नदाता सिर्फ खाद नहीं, इंसाफ मांग रहा है।वह पूछ रहा है क्या वो सिर्फ चुनावी नारों में अन्नदाता है, या वास्तव में देश की रीढ़, क्या उसके आँसू अब वोटबैंक की राजनीति से भी हल्के हो चुके हैं, सरकार को यह समझना होगा कि सिर्फ भाषणों से पेट नहीं भरते, न खेत लहलहाते हैं। अब समाधान चाहिए। नीति चाहिए जो जमीन पर उतरे, और व्यवस्था चाहिए जो मानवता से भरी हो।

किसान को अब खाद नहीं, सम्मान और सुरक्षा,चाहिए। वरना एक दिन ऐसा आएगा जब खाली खेत और टूटे किसान, देश की रीढ़ नहीं, उसकी असफलता की गवाही बन जाएंगे।

प्रशांत कटियार

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