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Wednesday, February 5, 2025

आईजीआरएस के फर्जी निस्तारण: प्रशासनिक लापरवाही और सरकार की छवि पर असर

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शरद कटियार

उत्तर प्रदेश सरकार ने जनता की शिकायतों के त्वरित निस्तारण के लिए एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली (IGRS – Integrated Grievance Redressal System) की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य नागरिकों को प्रशासन से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए एक डिजिटल मंच प्रदान करना था। लेकिन हाल के वर्षों में इस प्रणाली की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। शिकायतों के फर्जी निस्तारण, लीपापोती, और निष्क्रियता के चलते न केवल पीड़ितों को न्याय से वंचित किया जा रहा है, बल्कि इससे सरकार की छवि भी प्रभावित हो रही है।

सरकार की नीयत पर संदेह नहीं किया जा सकता, क्योंकि इस व्यवस्था को पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए कई सुधार किए गए हैं। लेकिन नीचे के प्रशासनिक तंत्र में भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण यह पहल अपने उद्देश्य से भटकती नजर आ रही है। सवाल यह उठता है कि जब सरकार जनता की समस्याओं को हल करने के लिए तत्पर है, तो फिर प्रशासनिक अधिकारियों की निष्क्रियता और मनमानी से उसकी छवि क्यों धूमिल हो रही है?

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा IGRS पोर्टल को लागू करने का उद्देश्य जनता को न्याय दिलाने और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाना था। मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार, यह पोर्टल एक ऐसा मंच होना चाहिए था जहां आम नागरिक अपनी शिकायत दर्ज कर सकें और उन्हें समयबद्ध तरीके से समाधान मिले।

लेकिन व्यवहारिक धरातल पर इसकी स्थिति ठीक इसके विपरीत है। आईजीआरएस पर की गई अधिकांश शिकायतों का निस्तारण केवल कागजों पर ही किया जा रहा है। कई बार बिना उचित जांच के शिकायतों को “निस्तारित” दिखाकर फाइल बंद कर दी जाती है। यह रवैया उन अधिकारियों का है, जो जनता के प्रति जवाबदेही से बचने के लिए शिकायतों को बिना उचित कार्रवाई के खत्म कर देते हैं।

कई मामलों में शिकायतकर्ता जब आईजीआरएस पर अपनी शिकायत की स्थिति जांचते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि शिकायत का निस्तारण कर दिया गया है, जबकि हकीकत में समस्या जस की तस बनी रहती है।
गलत रिपोर्ट देकर निस्तारण

प्रशासनिक अधिकारी झूठी रिपोर्ट बनाकर समस्या का समाधान कर दिया गया दिखा देते हैं। उदाहरण के तौर पर, किसी सड़क के गड्ढे भरने की शिकायत हो तो रिपोर्ट में लिखा जाता है कि सड़क दुरुस्त कर दी गई है, जबकि मौके पर स्थिति वही रहती है।

कई बार अधिकारियों द्वारा शिकायत को संबंधित विभाग को भेजने के नाम पर महीनों तक लटकाया जाता है। अंततः मामला लंबित रह जाता है और शिकायतकर्ता निराश होकर हार मान लेते हैं।
इस फर्जी निस्तारण से सबसे बड़ा नुकसान सरकार की साख और विश्वसनीयता को हो रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अधिकारियों की मनमानी के चलते जनता का विश्वास सरकार से डगमगाने लगा है।

कुछ जानकारों का मानना है कि आईजीआरएस की फर्जी कार्यप्रणाली के पीछे केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश भी हो सकती है।नकारात्मक माहौल बनाना

प्रशासनिक लापरवाही के कारण जब शिकायतें हल नहीं होतीं, तो जनता का असंतोष बढ़ता है। इसका सीधा फायदा सरकार विरोधी तत्वों को मिलता है, जो इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर सरकार की छवि खराब करने की कोशिश करते हैं।भ्रष्टाचार को बनाए रखना

कई अधिकारियों और कर्मचारियों के स्वार्थ जुड़े होते हैं, वे नहीं चाहते कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगे। इसलिए वे सरकार की योजनाओं को सही से लागू करने के बजाय, केवल रिपोर्टों में सुधार कर अपनी जिम्मेदारी से बचते रहते हैं।
जनता का भरोसा कम करना

जब जनता की शिकायतों का सही समाधान नहीं होता, तो वे सरकार के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखने लगते हैं। इससे जनता और प्रशासन के बीच की दूरी बढ़ती है, जिसका सीधा राजनीतिक असर पड़ता है।
अगर सरकार अपनी छवि को सुरक्षित रखना चाहती है और जनता के विश्वास को बनाए रखना चाहती है, तो आईजीआरएस की कार्यप्रणाली में सुधार लाना आवश्यक है।

किसी भी शिकायत को निस्तारित करने से पहले उसका भौतिक सत्यापन अनिवार्य किया जाए। उदाहरण के लिए, यदि किसी सड़क मरम्मत की शिकायत आई है, तो उसकी पुष्टि के लिए मौके पर जाकर जांच की जाए और उसकी तस्वीरें पोर्टल पर अपलोड की जाएं।निस्तारण की समीक्षा हो

मुख्यमंत्री कार्यालय या जिलाधिकारी कार्यालय से एक स्वतंत्र टीम बनाई जाए, जो शिकायतों के निस्तारण की दोबारा समीक्षा करे। अगर किसी अधिकारी द्वारा झूठा निस्तारण किया जाता है, तो उस पर सख्त कार्रवाई हो। उनके खिलाफ विभागीय जांच की जाए और उनकी जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।

किसी भी शिकायत को तब तक निस्तारित न माना जाए, जब तक शिकायतकर्ता खुद संतुष्ट न हो। आईजीआरएस पोर्टल में शिकायतकर्ता के फीडबैक का विकल्प दिया जाए, और उनकी स्वीकृति के बाद ही मामला बंद किया जाए।

आईजीआरएस एक महत्वपूर्ण पहल है, लेकिन जमीनी स्तर पर अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते यह अपने उद्देश्य से भटक गया है। शिकायतों के फर्जी निस्तारण से न केवल जनता को न्याय से वंचित किया जा रहा है, बल्कि सरकार की छवि भी धूमिल हो रही है। अगर प्रशासनिक लापरवाही पर रोक नहीं लगाई गई, तो जनता का सरकार से भरोसा उठ जाएगा।

सरकार को चाहिए कि वह आईजीआरएस की कार्यप्रणाली की व्यापक समीक्षा करे, दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करे, और इसे अधिक पारदर्शी बनाए। तभी यह व्यवस्था अपने असली उद्देश्य को पूरा कर पाएगी और जनता को राहत मिलेगी।

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