कृषि क्षेत्र हमेशा से भारत की रीढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश, जो देश के सबसे बड़े कृषि उत्पादक राज्यों में से एक है, ने हाल ही में केले (Banana) की खेती और उसके निर्यात में एक नई दिशा दिखाई है। राज्य सरकार और केंद्र सरकार की संयुक्त पहल ने किसानों को न केवल आधुनिक खेती के तरीकों से अवगत कराया है, बल्कि केले के निर्यात के माध्यम से उनकी आय में बढ़ोतरी की संभावनाएं भी सुनिश्चित की हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और अवध क्षेत्र में कुशीनगर, देवरिया, गोरखपुर, महराजगंज, बस्ती, अयोध्या और बाराबंकी जैसे जिलों में केले की खेती प्रमुखता से होती है। इन क्षेत्रों में पिछले दो दशकों में केले की खेती का रकबा लगातार बढ़ा है। बेहतर किस्मों और खेती के उन्नत तरीकों के उपयोग से उपज और गुणवत्ता दोनों में सुधार हुआ है।
राज्य सरकार की “वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट” (ODOP) योजना के तहत कुशीनगर को केला उत्पादन के लिए चुना गया है। यह पहल न केवल स्थानीय किसानों को प्रोत्साहन दे रही है, बल्कि उन्हें वैश्विक बाजारों में अपनी उपज पहुंचाने का अवसर भी दे रही है।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने पिछले सात वर्षों में किसानों की आय बढ़ाने और उन्हें नई तकनीकों से जोड़ने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रति हेक्टेयर 38,000 रुपये का अनुदान दिया जा रहा है। इसके अलावा, सरकार किसानों को केले के प्रसंस्करण और अन्य उत्पाद जैसे रेशे, जूस और पाउडर बनाने की ट्रेनिंग भी प्रदान कर रही है।
कुशीनगर और अन्य जिलों के किसानों को एक्सपोजर दिलाने के लिए राज्य सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किया है। हाल ही में नोएडा में आयोजित एक ट्रेड शो में कुशीनगर के किसानों ने अपने उत्पादों का प्रदर्शन किया, जिससे उन्हें बाजार की मांग और आधुनिक तकनीकों की समझ मिली।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पिछले दस वर्षों में केले का निर्यात लगभग दस गुना बढ़ा है। वर्ष 2013 में जहां भारत से मात्र 2.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर का केला निर्यात हुआ था, वहीं 2023-24 में यह आंकड़ा 25.14 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया।
यह वृद्धि सिर्फ एक आर्थिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह भारत के कृषि क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं का प्रतीक है। केंद्र सरकार का अगले दो से तीन वर्षों में केले का निर्यात एक अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य है।
भारत: विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक, लेकिन निर्यात में पीछे क्यों?
भारत वैश्विक केले उत्पादन में लगभग 30% हिस्सेदारी रखता है, और यह दुनिया का सबसे बड़ा केला उत्पादक देश है। लेकिन, इसके बावजूद भारत वैश्विक निर्यात बाजार में मात्र 1% हिस्सेदारी रखता है।
इस असमानता का प्रमुख कारण है केले के प्रसंस्करण और लॉजिस्टिक्स की सीमित सुविधाएं। केंद्र सरकार ने इसे ध्यान में रखते हुए पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए हैं, जो समुद्री रास्ते से फलों के किफायती निर्यात को प्रोत्साहित करेंगे। इसमें केला एक मुख्य उत्पाद होगा। हेल्दी फूड और ऑर्गेनिक उत्पादों की वैश्विक मांग तेजी से बढ़ रही है। भारतीय केले, जो स्वाद और पोषण में श्रेष्ठ हैं, वैश्विक बाजार में अपनी जगह बना रहे हैं। नेपाल, बांग्लादेश और खाड़ी देशों में भारतीय केले की मांग तेजी से बढ़ रही है।
केंद्र सरकार ने मुंबई में पहली बार सेलर-बायर मीट आयोजित करने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें केला मुख्य केंद्र में रहेगा। इससे भारतीय किसानों को नए बाजारों में प्रवेश करने और अपनी आय बढ़ाने का सीधा अवसर मिलेगा।
उत्तर प्रदेश की सरकार ने राज्य को एक्सप्रेसवे, एयरवेज और रेल सेवाओं से जोड़कर एक नई पहचान दी है। यह कनेक्टिविटी न केवल राज्य के औद्योगिक विकास के लिए लाभकारी है, बल्कि कृषि उत्पादों के निर्यात को भी आसान बना रही है।
राज्य की बेहतर लॉजिस्टिक्स सुविधाएं और बुनियादी ढांचे ने केले के निर्यात को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लैंडलॉक्ड होने के बावजूद उत्तर प्रदेश ने अपनी परिवहन क्षमताओं में सुधार कर किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं।
सरकार की आगामी योजनाएं: किसानों के लिए उम्मीदें हैं
किसानों को केला प्रसंस्करण की तकनीकें सिखाई जा रही हैं, जिससे वे केले के छिलकों, रेशों और तनों का उपयोग कर नए उत्पाद बना सकें। यह कदम उनकी आय में विविधता लाने में मदद करेगा।
एपीडा (APEDA) ने केले के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक रोडमैप तैयार किया है, जिसमें अगले तीन वर्षों में निर्यात को एक अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य है।
राज्य और केंद्र सरकारें किसानों को अंतरराष्ट्रीय ट्रेड फेयर और एक्सपोज में भाग लेने के अवसर दे रही हैं, जिससे वे वैश्विक खरीदारों से सीधे संपर्क कर सकें। समुद्री मार्गों से फलों के निर्यात के लिए किफायती विकल्प विकसित किए जा रहे हैं। यह पहल केले के अलावा अन्य फलों के निर्यात को भी गति देगी।
हालांकि केले के निर्यात और खेती में कई संभावनाएं हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। प्रसंस्करण इकाइयों की कमी, किसानों की सीमित प्रशिक्षण सुविधाएं, और निर्यात प्रक्रियाओं में जटिलता कुछ प्रमुख समस्याएं हैं।
इन समस्याओं के समाधान के लिए
ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे और मझोले प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना से किसानों को उत्पादों का मूल्यवर्धन करने में मदद मिलेगी। किसानों को आधुनिक खेती और प्रसंस्करण तकनीकों का प्रशिक्षण देना आवश्यक है। केंद्र और राज्य सरकारों को संयुक्त रूप से किसानों के लिए सहायक नीतियां बनानी चाहिए, जो उनके उत्पादों को बाजारों तक पहुंचाने में मदद करें।
उत्तर प्रदेश में केले की खेती और निर्यात में हो रही प्रगति न केवल किसानों के जीवन में सुधार ला रही है, बल्कि राज्य के आर्थिक विकास को भी गति दे रही है। केंद्र और राज्य सरकार की पहलें, जैसे कुशीनगर का ओडीओपी के रूप में चयन और निर्यात बढ़ाने के प्रयास, इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
आने वाले वर्षों में, यदि इन योजनाओं को सही तरीके से लागू किया गया, तो उत्तर प्रदेश न केवल केला उत्पादन में बल्कि इसके निर्यात में भी एक अग्रणी राज्य बन सकता है। इससे किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि होगी और राज्य का समग्र विकास सुनिश्चित होगा।