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Wednesday, October 8, 2025

इटावा-बरेली हाईवे की बदहाली: घटिया निर्माण का खुला खेल, सभी जिम्मेदार मौन

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– सांसद की शिकायत भी बेअसर, सड़क घोटाले पर नहीं हो रही कार्रवाई

फर्रुखाबाद/मोहम्मदाबाद। राज्य के विकास की रीढ़ माने जाने वाले इटावा-बरेली हाईवे (संभावित NH-730C या SH-91) की हालत इन दिनों बद से बदतर हो चुकी है। करोड़ों की लागत से बने इस हाईवे की परतें पहली ही बरसात में उखड़ चुकी हैं। जगह-जगह गड्ढों में तब्दील सड़कें दुर्घटनाओं को न्योता दे रही हैं, लेकिन लोक निर्माण विभाग (PWD) और संबंधित एजेंसियों के अफसरों ने चुप्पी साध रखी है।

सड़क पर बिछाई गई घटिया परतें, मानकों की अनदेखी

सूत्रों के अनुसार, हाईवे के निर्माण में तकनीकी मानकों को ताक पर रख दिया गया। बताया गया कि पुराने स्ट्रक्चर को पूरी तरह हटाए बिना सिर्फ स्क्रैचिंग कर नई डामर परतें चढ़ा दी गईं। बेस और सब-बेस में जरूरी मोटाई व गुणवत्ता नहीं रखी गई, जिससे हल्की बारिश में ही सड़क उखड़ गई।

स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि निर्माण में भारी घोटाले हुए हैं। सवाल उठाए जा रहे हैं कि विभागीय अधिकारी इसलिए चुप हैं क्योंकि या तो उन्हें ऊपर से दबाव है या उन्होंने मोटा कमीशन लिया है। ‘सड़क नहीं तो टोल नहीं’ के नारे के बीच ऐसी बदहाल सड़क पर टोल वसूली की योजना पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

सांसद की शिकायत भी बेअसर रही

फर्रुखाबाद से सांसद मुकेश राजपूत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को लिखित शिकायत भेजी थी। उन्होंने निर्माण में लापरवाही और भ्रष्टाचार की ओर ध्यान आकर्षित किया, लेकिन महीनों बीत जाने के बावजूद कोई जांच या कार्रवाई नहीं हुई है।

पूर्व अभियंता वी.के. त्रिपाठी ने कहा, “अगर सड़क पहली ही बारिश में उखड़ रही है, तो स्पष्ट है कि बिटुमिन व सब-बेस की गुणवत्ता से समझौता किया गया। यह एक गंभीर मामला है और इस पर स्वतंत्र तकनीकी जांच की आवश्यकता है।”
हैरानी की बात यह है कि अब तक न ही जिलाधिकारी और न ही पीडब्ल्यूडी के अधिशासी अभियंता ने कोई सार्वजनिक बयान दिया है। इससे लोगों में रोष और अविश्वास की भावना बढ़ती जा रही है।

बड़ा सवाल क्या जवाबदेही तय होगी या घोटाले दबा दिए जाएंगे?

इटावा-बरेली हाईवे की यह स्थिति केवल धन की बर्बादी नहीं, बल्कि नागरिकों की जान के साथ खिलवाड़ है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और प्रशासन इस मामले में क्या रुख अपनाते हैं। क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी बाकी घोटालों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

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