शरद कटियार
आम आदमी पार्टी (AAP) और उसके प्रमुख अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal ) के लिए दिल्ली चुनाव के परिणाम किसी बड़े झटके से कम नहीं हैं। जिस पार्टी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से जन्म लिया था, वह अब अपनी ही राजनीतिक गलतियों और अविश्वास के कारण हाशिये पर जाती दिख रही है। दिल्ली की जनता ने जिस भरोसे के साथ केजरीवाल को सत्ता सौंपी थी, आज उसी भरोसे का टूटना यह दर्शाता है कि राजनीति में केवल वादे और प्रचार से जनता को लंबे समय तक भ्रमित नहीं रखा जा सकता।
गुरु, मित्र और साथियों से विश्वासघात
अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक सफर की शुरुआत अन्ना हजारे के आंदोलन से हुई थी, लेकिन सत्ता की लालसा ने उन्हें अपने ही गुरु के खिलाफ खड़ा कर दिया। अन्ना हजारे, जिन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन छेड़ा था, बाद में केजरीवाल के कदमों से खुद को ठगा महसूस करने लगे। यही नहीं, आम आदमी पार्टी के गठन में अहम भूमिका निभाने वाले कुमार विश्वास भी उनके राजनीतिक षड्यंत्रों का शिकार हुए। जिन साथियों ने पार्टी को मजबूती दी थी, वे एक-एक कर दूर होते गए—योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, आशुतोष और अन्य कई नेता, जिन्होंने पार्टी को एक मजबूत विचारधारा दी थी।
दिल्ली की जनता ने कई बार आम आदमी पार्टी को मौका दिया, लेकिन वादों की असलियत सामने आने पर जनता ने इस बार सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बिजली-पानी मुफ्त देने की राजनीति और ‘मोदी विरोध’ के नाम पर चुनाव जीतने की रणनीति इस बार कारगर नहीं रही। जनता को महसूस हुआ कि स्कूलों और अस्पतालों के विकास की कहानियां सिर्फ विज्ञापनों तक सीमित रहीं, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और थी।
दिल्ली में कांग्रेस, जिसे केजरीवाल ने लगभग खत्म मान लिया था, इस चुनाव में बड़ी ताकत बनकर उभरी है। यह दिखाता है कि राजनीति में किसी को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता। कांग्रेस ने अकेले ही AAP को किनारे लगा दिया, जिससे साफ हो गया कि केजरीवाल की पार्टी अब जनता के लिए कोई बड़ा विकल्प नहीं रह गई है।
केजरीवाल की पार्टी में कई लोकप्रिय चेहरे थे, लेकिन वे भी इस अविश्वास की आंधी में टिक नहीं पाए। जनता ने यह संदेश दिया कि व्यक्ति की लोकप्रियता केवल वादों और मीडिया प्रचार से नहीं चलती, बल्कि जमीन पर किए गए काम ही असली पहचान होते हैं। इस चुनाव परिणाम ने साबित कर दिया कि जनता सिर्फ मुफ्त योजनाओं के लालच में नहीं आती, बल्कि सच्चे नेतृत्व की तलाश में रहती है।
यह चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अरविंद केजरीवाल की राजनीति अब ढलान पर है। जिस नेता को कभी देश का भविष्य कहा जाता था, आज उनकी साख पर सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने न केवल अपने सहयोगियों का भरोसा तोड़ा, बल्कि जनता से भी वह विश्वास खो चुके हैं, जो उनकी सबसे बड़ी ताकत थी।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आम आदमी पार्टी इस हार के बाद किस दिशा में जाती है—क्या केजरीवाल अपनी गलतियों से सबक लेकर नई शुरुआत करेंगे, या यह हार उनके राजनीतिक करियर के अंत की शुरुआत साबित होगी?