– सीएम योगी आदित्यनाथ की बुलडोज़र वाली कठोर छवि को धुंधला कौन कर रहा है?
– अभियान के बाद भी कब्ज़ाधारियों ने फिर जमा लिया डेरा
– नेताओं की चुप्पी सवालों में
– नगर निगम की कार्रवाई बेअसर
लखनऊ: गुडंबा थाना (Gudamba police station) क्षेत्र में नगर निगम (Municipal Corporation) की कार्रवाई सिर्फ़ दो दिन ही असर दिखा पाई। भारी तैयारी और सख़्ती के साथ जिस अतिक्रमण को हटाया गया था, वही कब्जाधारी अब फिर से जगह-जगह पैर पसारने लगे हैं। मामा चौराहा से लेकर टेढ़ी पुलिया तक अतिक्रमण हटाने का आदेश तो ज़रूर जारी हुआ है, लेकिन हकीकत ये है कि कई जगहों पर कब्जाधारियों ने फिर से दुकानें और ढांचे खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इनमें से कुछ लोगों को राजनीतिक संरक्षण भी हासिल है, जिसके दम पर वे खुलकर चुनौती देते हुए दिखाई दे रहे हैं।
बताते चले कि कब्जाधारी तो बाक़ायदा इन ज़मीनों और दुकानों को किराए पर उठाने तक का कारोबार कर रहे हैं। लेखराज पन्ना इलाके में तो हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि लोग खुलेआम कहते हैं – “नगर निगम हमारा कुछ नहीं कर पाएगा।” ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब अभियान के बाद भी दोबारा अतिक्रमण शुरू हो ही जाना है, तो नगर निगम की मेहनत और सरकारी आदेशों का क्या फायदा?
गुडंबा क्षेत्र में दोबारा पनपे अतिक्रमण ने अब एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बुलडोज़र वाली कड़ी छवि को धुंधला कौन कर रहा है? निगम और प्रशासन ने दिखावा तो किया, लेकिन दबंग कब्जाधारियों पर कड़ी कार्रवाई का असर धरातल पर दिखना बाकी है। अगर नगर निगम सिर्फ़ औपचारिकता निभाकर कार्रवाई करता रहा तो यह सीधे-सीधे सरकार की शून्य सहिष्णुता नीति पर प्रश्न खड़ा करेगा।
स्थानीय लोग साफ़ कह रहे हैं – “मुश्किल से हटाए गए कब्जे फिर से लौट आए, तो आम जनता कब तक ठगी महसूस करेगी?” लखनऊ के लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं कि प्रशासन इस बार सिर्फ कागज़ों में नहीं, बल्कि हकीकत में भी शहर को अतिक्रमण और गंदगी से आज़ादी दिलाए। ज़रूरत है ठोस, स्थायी और सुरक्षा के साथ चलाए गए अभियान की, ताकि राजधानी सचमुच स्वच्छ और व्यवस्थित शहर बन सके।
नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि वे फिर से अभियान चलाने की योजना बना रहे हैं। लेकिन जब तक राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं रुकेगा, तब तक कोई ठोस असर नहीं दिखेगा। इस लचर व्यवस्था का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।