रूमेटाइड अर्थराइटिस से पीड़ित कार्यकर्ता को मिली राहत, जेल में नहीं मिल पा रही थी विशेष चिकित्सा सुविधा
नई दिल्ली: Supreme Court ने मंगलवार को एल्गर परिषद-भीमा कोरेगांव मामले (Elgar Parishad-Bhima Koregaon case) के आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता महेश राउत को चिकित्सा आधार पर बड़ी राहत दी है। अदालत ने राउत को छह हफ्ते की अंतरिम जमानत प्रदान कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सुनवाई के बाद दिया।
दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले ही महेश राउत की जमानत याचिका स्वीकार कर ली थी, लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने अपने ही आदेश पर एक हफ्ते के लिए रोक लगा दी थी। इसके चलते राउत को जेल से रिहाई नहीं मिल सकी थी।रूमेटाइड अर्थराइटिस से जूझ रहे राउत सुप्रीम कोर्ट में राउत की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी. यू. सिंह ने दलील दी कि महेश राउत गंभीर बीमारी रूमेटाइड अर्थराइटिस से पीड़ित हैं और उन्हें विशेष चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता है। उनका कहना था कि जेल या जेजे अस्पताल जैसी जगहों पर इस बीमारी के लिए जरूरी विशेषज्ञ उपचार उपलब्ध नहीं है।
पीठ ने दलीलों पर गौर करते हुए कहा:
“आवेदक चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत मांग रहा है और इस तथ्य को भी ध्यान में रखते हुए कि उसे वास्तव में (हाईकोर्ट द्वारा) जमानत दी गई थी, हम छह सप्ताह की अवधि के लिए चिकित्सा जमानत देने के पक्ष में हैं।”
क्या है एल्गर परिषद-भीमा कोरेगांव मामला?
दिसंबर 2017 में पुणे के शनिवारवाड़ा में एल्गर परिषद सम्मेलन आयोजित किया गया था। आरोप है कि इस सम्मेलन के दौरान दिए गए भाषणों ने 1 जनवरी 2018 को हुए भीमा-कोरेगांव हिंसा को भड़काने में भूमिका निभाई। इस मामले में कई सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं को आरोपी बनाया गया था, जिनमें महेश राउत भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब महेश राउत को इलाज के लिए जेल से बाहर आने का मौका मिल गया है। हालांकि, उनकी जमानत सिर्फ छह हफ्ते की अंतरिम अवधि के लिए दी गई है, जिसके बाद अदालत में फिर से उनकी स्थिति पर विचार होगा।


