– संघर्ष समिति के आह्वान पर पूरे प्रदेश में एकजुट हुए बिजली कर्मचारी — बोले, “निजीकरण की दूसरी चाल बर्दाश्त नहीं”
लखनऊ: प्रदेशभर के विद्युत कर्मचारियों (Electricity employees) ने आज विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आह्वान पर एक बार फिर निजीकरण और वर्टिकल सिस्टम (vertical system and privatization) के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। राजधानी लखनऊ समेत सभी जिलों में कर्मचारियों ने प्रदर्शन और धरना आयोजित कर सरकार की नीति पर कड़ी आपत्ति जताई। कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि सरकार वर्टिकल सिस्टम के नाम पर बिजली विभाग को धीरे-धीरे निजी कंपनियों के हवाले करने की तैयारी कर रही है।प्रदर्शनकारियों का कहना था कि इस नई व्यवस्था के तहत शहरी क्षेत्रों में पुनर्गठन के नाम पर कर्मचारियों और इंजीनियरों के पद घटाए जा रहे हैं, जिससे सरकारी नियंत्रण कमजोर होगा और निजी हाथों में काम सौंपने का रास्ता तैयार होगा।
संघर्ष समिति ने कहा कि जिस तरह मध्यांचल के लेसा (Lesa) और केस्को (Kesco) में पदों में कटौती की गई है, उसी तर्ज पर पश्चिमांचल, पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत निगमों में भी हजारों पद खत्म किए जाने की योजना है। फिर कामकाज प्रभावित होने की दुहाई देकर निजी कंपनियों को कार्य सौंपा जाएगा। कर्मचारियों ने बताया कि प्रस्तावित व्यवस्था से अकेले लखनऊ के लेसा में करीब 2055 नियमित पद और लगभग 6000 संविदा कर्मियों के पद समाप्त हो जाएंगे।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वर्टिकल सिस्टम कानपुर, मेरठ, अलीगढ़ और बरेली में पहले ही असफल साबित हो चुका है। उनका कहना था कि इस व्यवस्था से बिजली दरें बढ़ेंगी, जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किसानों के लिए की गई 1,87,000 निःशुल्क ट्यूबवेल योजना भी बंद हो सकती है। संघर्ष समिति के नेताओं ने आरोप लगाया कि प्रबंधन पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत निगमों की हजारों करोड़ की संपत्ति मात्र एक रुपये की लीज पर देने की तैयारी कर रहा है।
उन्होंने कहा कि यह जनता की संपत्ति है, इसे इस तरह निजी हाथों में देना जनविरोधी कदम होगा। सरकार को अल्टीमेटम — “टेंडर निकला तो जेल भरो आंदोलन” समिति के पदाधिकारियों ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा —
“हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन यदि सरकार ने वर्टिकल सिस्टम या निजीकरण के लिए टेंडर जारी किया, तो उसी दिन जेल भरो आंदोलन शुरू किया जाएगा।”
कर्मचारियों की माँग की, वर्टिकल सिस्टम की प्रक्रिया तत्काल रोकी जाए। बिजली विभाग में कर्मचारियों के पदों में कटौती बंद की जाए। सभी संविदा कर्मियों को नियमित किया जाए। बिजली निजी कंपनियों को देने की नीति रद्द की जाए। बिजली कर्मचारियों के इस प्रदर्शन ने राज्य सरकार के ऊर्जा क्षेत्र सुधारों को लेकर नई बहस छेड़ दी है। जहाँ सरकार इसे “प्रबंधन सुधार” बता रही है, वहीं कर्मचारी इसे “निजीकरण की आड़ में सरकारी ढांचे के विघटन” के रूप में देख रहे हैं। अब देखना यह होगा कि सरकार इस बार कर्मचारियों के अल्टीमेटम को।


