छत्तीसगढ़ की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) के रायपुर स्थित आवास और अन्य ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम ने 11 घंटे लंबा सर्च ऑपरेशन चलाया, लेकिन कोई ठोस बरामदगी नहीं हुई। इसके बाद बघेल ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला और इसे राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया।
ED की टीम ने शनिवार को सुबह भूपेश बघेल के रायपुर स्थित आवास, उनके सहयोगियों और करीबी लोगों के ठिकानों पर छापेमारी की। छानबीन का यह सिलसिला पूरे 11 घंटे तक चला लेकिन जब टीम बाहर आई, तो किसी बड़े सबूत या बरामदगी का कोई संकेत नहीं दिया।
इसके तुरंत बाद भूपेश बघेल ने प्रेस को संबोधित करते हुए ED की कार्रवाई को ‘राजनीतिक ड्रामा’ करार दिया। उन्होंने कहा:
> “11 घंटे तक मेरे घर में ED का तलाशी अभियान चला, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला। वे सिर्फ झुनझुना हिलाते हुए चले गए। यह पूरी कार्रवाई सिर्फ मुझे डराने और दबाव बनाने की कोशिश थी।”
बघेल का सीधा आरोप था कि केंद्र सरकार विपक्षी नेताओं को ED और CBI के डर से दबाना चाहती है।
कांग्रेस का आरोप – ‘लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को कमजोर करने की साजिश’
ED की इस कार्रवाई के बाद छत्तीसगढ़ में राजनीतिक माहौल गरमा गया। कांग्रेस इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” बता रही है, जबकि बीजेपी का कहना है कि “ED अपना काम कर रही है।”
छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा:
“जब से भाजपा सत्ता में आई है, तब से वह विपक्षी नेताओं के खिलाफ एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।”
पार्टी का यह भी कहना है कि ED की यह कार्रवाई ‘छत्तीसगढ़ मॉडल’ को बदनाम करने की कोशिश है।
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम कोल घोटाले और रिश्वतखोरी मामलों से जुड़ा रहा है। ED पहले भी इस मामले में छत्तीसगढ़ में कई छापेमारी कर चुकी है।
ED का आरोप है कि जब भूपेश बघेल मुख्यमंत्री थे, तब छत्तीसगढ़ में कोयला परिवहन और खनन से जुड़ी कंपनियों से ‘कट मनी’ वसूली जाती थी। इससे करोड़ों रुपये का अवैध लेन-देन हुआ। हालांकि, बघेल इन सभी आरोपों को खारिज करते हैं और इसे भाजपा की ‘राजनीतिक साजिश’ बताते हैं।
बीजेपी इस मामले में पूरी तरह ED के साथ खड़ी दिख रही है। पार्टी प्रवक्ता केदार गुप्ता ने कहा:
“अगर भूपेश बघेल पाक-साफ हैं, तो जांच से क्यों डर रहे हैं? भ्रष्टाचारियों को बचाने की बजाय कांग्रेस को कानून का सम्मान करना चाहिए।”
भाजपा का तर्क है कि अगर कोई गड़बड़ी नहीं हुई, तो जांच से बचने की जरूरत नहीं।
ED की यह छापेमारी सिर्फ कानूनी कार्रवाई नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी नजर आती है।पहला, इससे कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ेगा।दूसरा, भाजपा इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी ‘क्लीन इमेज’ को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल कर सकती है।तीसरा, लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में लाने की कोशिश हो सकती है।
यह बहस का विषय है कि ED वास्तव में स्वतंत्र एजेंसी के रूप में काम कर रही है, या केंद्र सरकार के राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल हो रही है।डेटा क्या कहता है?2014 के बाद से ED की कार्रवाई का 80% से ज्यादा निशाना विपक्षी नेता बने हैं।
2019 लोकसभा चुनाव से पहले भी ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और सोनिया गांधी के करीबी लोगों पर ED ने शिकंजा कसा था।
अब 2024 के चुनाव से पहले भूपेश बघेल, हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं पर ED की सक्रियता बढ़ गई है।
छत्तीसगढ़ में इस कार्रवाई को जनता दो नजरियों से देख रही है।भाजपा समर्थक इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती मान रहे हैं।
कांग्रेस समर्थक इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई मान रहे हैं।
लेकिन आम जनता के लिए असली मुद्दे महंगाई, बेरोजगारी और विकास हैं। अगर कांग्रेस इसे सही से भुना पाई, तो यह भाजपा के खिलाफ “शिकार बनाए जाने का नैरेटिव” खड़ा कर सकती है।
अगर ED कोई बड़ा सबूत नहीं ढूंढ पाई, तो यह भूपेश बघेल के लिए फायदा हो सकता है।
अगर जांच लंबी चलती है और कोई नया मामला खुलता है, तो उनकी राजनीतिक साख को नुकसान हो सकता है।
ED की छापेमारी एक कानूनी कार्रवाई के साथ-साथ राजनीतिक रणनीति भी है। कांग्रेस इसे राजनीतिक साजिश बता रही है। बीजेपी इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई बता रही है।जनता को असली मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि ED आगे क्या कदम उठाती है, और क्या यह मामला 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस की लड़ाई को नया मोड़ देगा?