मलेशिया-बाली-इंडोनेशिया में आयोजित 25वें अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में फर्रुखाबाद का गौरव बढ़ा
फर्रुखाबाद: हिन्दी के संवर्धन, संरक्षण और वैश्विक प्रचार-प्रसार को समर्पित अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन (International Hindi Conference) के 25वें रजत पर्व में फर्रुखाबाद के साहित्यकारों ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। मलेशिया-बाली-इंडोनेशिया (Malaysia-Bali-Indonesia) में आयोजित इस सम्मेलन के पाँच सत्रों में विशेष अतिथि के रूप में गांधीवादी विचारक पद्मश्री अगुश इन्द्र उदयन और बाली के विधायक एवं मंत्रीमंडल सदस्य डॉ. सोमवीर उपस्थित रहे।
सम्मेलन में डॉ. रामकृष्ण राजपूत को राष्ट्रपति सुकर्णो सम्मान और वरिष्ठ उपन्यासकार *डॉ. शरद पगारे सम्मान से अलंकृत किया गया। वहीं फर्रुखाबाद की प्रतिनिधि डॉ. रत्ना सिंह को वीरमती माहेश्वरी सम्मान तथा डॉ. शरद पगारे सम्मान प्रदान किया गया। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. राजपूत ने सम्मेलन के केंद्रीय विषय ‘रचना के केन्द्र में: विचारधारा या कला’ पर अपने विचार रखते हुए कहा कि साहित्य को प्रगतिशील, सकारात्मक और शोषित-पीड़ित मानवता की पक्षधर विचारधारा का समर्थन करना चाहिए। उन्होंने बुद्ध, मार्क्स और अंबेडकर की राह पर चलने को श्रेयस्कर बताया।
डॉ. राजपूत ने विभिन्न भाषाओं की पुस्तकों के विमोचन अवसर पर कहा कि हिन्दी समेत सभी भाषाओं को वैश्विक मंच पर जोड़ना और लोककला, संस्कृति एवं सभ्यता को साझा करना ही विकास का मार्ग है। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी को समृद्ध बनाने के लिए अन्य देशों की प्रमुख भाषाओं का अध्ययन आवश्यक है।
डॉ. सोमवीर ने अपने भाषण की शुरुआत “ओम स्वस्ति अस्ति” से की और बताया कि इंडोनेशियाई शब्दकोश में लगभग 2000 संस्कृत शब्द मौजूद हैं, जो भारतीय संस्कृति की गहरी छाप को दर्शाते हैं। इंडोनेशिया से लौटने के बाद डॉ. रामकृष्ण राजपूत ने अपनी यात्रा के अनुभव साझा किए और इस सम्मेलन को हिन्दी तथा भारतीय संस्कृति के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप को सशक्त करने वाला बताया।