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Saturday, March 8, 2025

डॉ. अंबेडकर का राष्ट्रवाद एवं बुद्ध के सिद्धांतों पर विवेचनाएं: एक ऐतिहासिक शोध

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– बाबा साहब के राष्ट्रवाद और बौद्ध दर्शन पर आधारित चर्चित ग्रन्थ
– प्रोफेसर राजकुमार की एक और ऐतिहासिक सौगात
– विद्वानों और जिम्मेदार कर रहे पूरे देश में सराहना

शरद कटियार

झारखंड के राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक पूर्व कुलपति और प्रख्यात विद्वान प्रोफेसर राजकुमार की नवीनतम पुस्तक “डॉ. अंबेडकर का राष्ट्रवाद एवं बुद्ध के सिद्धांतों पर विवेचनाएं” इन दिनों चर्चा का केंद्र बनी हुई है। यह ग्रंथ बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण, सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और बुद्ध के सिद्धांतों पर उनके विचारों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इस ऐतिहासिक पुस्तक का लेखन वकील ऋषभ कुमार और अन्य सहयोगियों के साथ किया गया है, जो इतिहास के पन्नों में एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर रही है।

इस पुस्तक में विशेष रूप से इस तथ्य को रेखांकित किया गया है कि बाबा साहब केवल दलितों और पिछड़ों के नेता नहीं थे, बल्कि वे संपूर्ण भारतीय समाज को एकीकृत करने की दिशा में कार्यरत एक महान राष्ट्रवादी चिंतक थे। उन्होंने बुद्ध के सिद्धांतों को अपनाकर समाज में समानता और समरसता को बढ़ावा देने का प्रयास किया।

डॉ. अंबेडकर: राष्ट्रवाद और सामाजिक न्याय के प्रतीक

डॉ. अंबेडकर का राष्ट्रवाद केवल राजनीतिक न होकर एक व्यापक सामाजिक दर्शन था, जिसमें सभी वर्गों को समान अधिकार देने की अवधारणा शामिल थी। पुस्तक में इस बात को प्रमाण सहित प्रस्तुत किया गया है कि उन्होंने कई अवसरों पर व्यक्तिगत और राजनीतिक लाभ को छोड़कर राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी।

ब्रिटिश शासन के दौरान जब प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने कम्युनल अवॉर्ड की घोषणा की, तो बाबा साहब को एक अलग राजनीतिक पहचान बनाने का अवसर प्राप्त था। यदि वे चाहते, तो दलितों के लिए एक स्वतंत्र राजनीतिक सत्ता स्थापित कर सकते थे, लेकिन उन्होंने पूना पैक्ट के माध्यम से भारतीय समाज की एकता को बरकरार रखा।

पुस्तक में यह भी उल्लेख किया गया है कि 1937 में हैदराबाद के निजाम ने उन्हें चार करोड़ रुपये की पेशकश इस शर्त पर की थी कि वे इस्लाम धर्म स्वीकार कर लें। लेकिन बाबा साहब ने इसे अस्वीकार कर यह सिद्ध कर दिया कि उनका संघर्ष केवल दलित समाज के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत के लिए था।उन्हें केवल मुस्लिम धर्म ही नहीं ईसाई,सिख आदि धर्मों को भी अपनाने का न्योता मिला था,लेकिन उनका राष्ट्रवाद किसी संकीर्ण जातीय पहचान तक सीमित नहीं था, बल्कि वह समावेशी और सार्वभौमिक था।

बौद्ध धर्म और बाबा साहब का मार्गदर्शन

बाबा साहब ने बुद्ध के विचारों को केवल आध्यात्मिक आधार पर नहीं अपनाया, बल्कि उन्होंने इसे एक सामाजिक क्रांति के रूप में देखा। पुस्तक में यह स्पष्ट किया गया है कि उन्होंने मुस्लिम लीग का समर्थन नहीं किया और अलग राष्ट्र की अवधारणा को नकार दिया। उन्होंने राष्ट्र की अखंडता और सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए बौद्ध धर्म को अपनाया, क्योंकि यह धर्म ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के सिद्धांत पर आधारित था।
डॉ. अंबेडकर के प्रमुख प्रेरणास्रोतों में महात्मा बुद्ध, छत्रपति शाहू जी महाराज और ज्योतिबा फुले शामिल थे। शाहू जी महाराज ने दलितों और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार किया, जिससे बाबा साहब को भी आगे बढ़ने का अवसर मिला।

इतिहास के अनछुए पहलू और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण

पुस्तक में इतिहास के कई अनछुए पहलुओं को भी उजागर किया गया है। इसमें वर्णित है कि किस प्रकार भारतीय समाज में वर्ण व्यवस्था के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए बुद्ध के विचारों की आवश्यकता थी।

प्राचीन भारत के संदर्भ में, इसमें पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल पर विशेष ध्यान दिया गया है। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में, राजा पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध धर्म के अनुयायियों पर अत्याचार किए और उनके विहारों को नष्ट किया। यह पुस्तक इस ऐतिहासिक घटना के प्रमाणों को प्रस्तुत करते हुए यह दर्शाती है कि बौद्ध धर्म को किस प्रकार राजनीतिक षड्यंत्रों का शिकार बनाया गया था।
इस ऐतिहासिक ग्रंथ को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी प्रशंसा की, विद्वानों ने इस पुस्तक को अत्यधिक सराहा और इसे भारत की बौद्धिक धरोहर करार दिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने भी इस पुस्तक को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज बताया। उनके अनुसार, यह ग्रंथ नई पीढ़ी को भारत के गौरवशाली अतीत से परिचित कराएगा और सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों को उजागर करेगा।
“डॉ. अंबेडकर का राष्ट्रवाद एवं बुद्ध के सिद्धांतों पर विवेचनाएं” केवल एक शोध ग्रंथ नहीं, बल्कि एक वैचारिक क्रांति है। यह पुस्तक बाबा साहब के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण और उनके समाज सुधारक विचारों को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है।

इस ग्रंथ में डॉ. अंबेडकर के निर्णयों, उनके संघर्षों और उनके सामाजिक योगदान का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। यह पुस्तक भारतीय इतिहास के उन पहलुओं को उजागर करती है, जो अब तक अनदेखे रहे हैं और जो भविष्य में समाज को एक नई दिशा देने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

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