शरद कटियार
भारत (India) जैसे लोकतांत्रिक देश (democratic country) में, जहां संविधान प्रत्येक नागरिक को समानता, स्वतंत्रता (Freedom) और न्याय का अधिकार प्रदान करता है, वहां किसी समुदाय का भयवश पलायन करना न केवल चिंताजनक है, बल्कि लोकतंत्र की नींव पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात (Kanpur Dehat) स्थित बिल्हौर तहसील के खासपुर गांव में कुर्मी समाज के 34 परिवारों का पलायन इसी विडंबना का प्रत्यक्ष उदाहरण है। यह घटना न केवल प्रशासनिक उदासीनता को उजागर करती है, बल्कि समाज में व्याप्त जातीय असमानता और राजनीतिक संरक्षण की गंभीरता को भी रेखांकित करती है।
खासपुर गांव में कुर्मी समाज के लोगों पर लंबे समय से अत्याचार हो रहे थे। गांव के दबंग ननकू और उसके सहयोगियों द्वारा महिलाओं और बेटियों के साथ दुर्व्यवहार, पूर्व प्रधान पर जानलेवा हमला, और लगातार धमकियों ने इन परिवारों को भयभीत कर दिया। प्रशासनिक अधिकारियों को कई बार शिकायतें दी गईं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। परिणामस्वरूप, इन परिवारों ने अपनी सुरक्षा के लिए गांव छोड़ने का निर्णय लिया।
इस घटना में प्रशासन की निष्क्रियता और राजनीतिक संरक्षण की भूमिका स्पष्ट रूप से सामने आती है। ननकू, जो पहले एक पूर्व विधायक का करीबी था, अब सत्तारूढ़ दल के विधायक के संरक्षण में है। यह राजनीतिक संरक्षण ही उसे कानून से ऊपर महसूस कराता है। पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं होना, न्याय प्रणाली की विफलता को दर्शाता है। यह स्थिति न केवल पीड़ितों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए खतरनाक संकेत है।
खासपुर की घटना जातीय असमानता की गहरी जड़ों को उजागर करती है। कुर्मी समाज, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ माना जाता है, अक्सर उच्च जातियों के अत्याचार का शिकार होता है। यह सामाजिक विघटन केवल खासपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है। जब तक समाज में सभी जातियों को समान अधिकार और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।
भारत का लोकतंत्र समानता, स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है। लेकिन खासपुर जैसी घटनाएं इन मूल्यों पर आघात करती हैं। जब एक समुदाय को अपने ही देश में सुरक्षित महसूस नहीं होता और उसे पलायन करना पड़ता है, तो यह लोकतंत्र की विफलता है। यह स्थिति केवल कुर्मी समाज के लिए नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।पुलिस और प्रशासन को राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, चाहे उनका राजनीतिक संरक्षण कितना भी मजबूत क्यों न हो। राजनीतिक दलों को अपने सदस्यों और समर्थकों की गतिविधियों पर निगरानी रखनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है, तो उसे पार्टी से निष्कासित किया जाना चाहिए। समाज में जातीय समानता और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
शिक्षा और मीडिया के माध्यम से लोगों को संवेदनशील बनाया जाना चाहिए।उच्च न्यायालयों को ऐसी घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेना चाहिए और पीड़ितों को त्वरित न्याय प्रदान करना चाहिए। खासपुर की घटना केवल एक गांव की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। यदि हम अब भी नहीं जागे और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो हमारा लोकतंत्र केवल नाम मात्र का रह जाएगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर नागरिक को सुरक्षा, सम्मान और न्याय मिले, तभी हमारा देश वास्तव में लोकतांत्रिक कहलाएगा।
शरद कटियार
प्रधान संपादक, दैनिक यूथ इंडिया