– गंभीर सवाल, गुंडा एक्ट जैसी महत्वपूर्ण पत्रावलियाँ दबाकर रखी
– मुख्यमंत्री की “जीरो टॉलरेंस” नीति को चूना?
फर्रुखाबाद।
जनपद प्रशासन में इन दिनों गहराते अंतर्विरोधों और रहस्यमय फैसलों ने सबको चौंका दिया है। जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी ने ताज़ा आदेश जारी करते हुए सिटी मजिस्ट्रेट से प्रभारी आयुध का प्रभार हटाकर उसे अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) अरुण कुमार को सौंप दिया है।
यह आदेश भले ही सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत जारी किया गया हो, मगर इसके पीछे के कारणों पर सवाल उठ रहे है।
सूत्रों के अनुसार, एडीएम अरुण कुमार पर गुंडा एक्ट की कई महत्वपूर्ण पत्रावलियाँ दबाकर रखने के आरोप हैं। बताया जा रहा है कि कई कुख्यात अपराधियों के विरुद्ध प्रस्तावित गुंडा एक्ट की कार्यवाही महीनों से उनकी मेज पर लंबित है।
इसी बीच, कुछ आवंटन व अनुमति प्रकरणों में भी मोटी रकम वसूले जाने की चर्चाएँ प्रशासनिक हलकों में तेज़ हैं।
जीरो टॉलरेंस नीति के तहत
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की “जीरो टॉलरेंस” नीति के बावजूद ऐसे अधिकारी का सक्रिय और प्रभावी बने रहना सरकार की छवि पर सवाल खड़ा कर रहा है।
सूत्रों का कहना है कि एडीएम का स्थानीय बसपाई राजनीतिक और कुछ प्रभावशाली तत्वों से गहरा तालमेल है, जिसके चलते उनके विरुद्ध शिकायतों पर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पा रही।
जानकारी के अनुसार, एडीएम अरुण कुमार न केवल जनप्रतिनिधियों से संवाद स्थापित करने में अरुचि रखते हैं, बल्कि प्रशासनिक बैठकों में भी अक्सर एकतरफा रवैया अपनाते हैं। इसके बावजूद वे जिले के सबसे प्रभावी अफसरों में गिने जाते हैं।
सवाल यह, क्या जिले में ‘अदृश्य सत्ता केंद्र’ सक्रिय है?
सिटी मजिस्ट्रेट से प्रभार छीने जाने और एडीएम को आयुध का प्रभार सौंपने के बाद यह चर्चा तेज़ है कि फर्रुखाबाद में कुछ अफसरों का गठजोड़ सत्ता के समानांतर तंत्र की तरह काम कर रहा है।
जनता अब यह जानना चाहती है कि क्या मुख्यमंत्री कार्यालय इस प्रकरण पर संज्ञान लेगा?
क्या जीरो टॉलरेंस की नीति केवल कागजों तक सीमित है?
और क्या एडीएम पर लगे आरोपों की निष्पक्ष जांच होगी?
> “फर्रुखाबाद में प्रशासनिक साजिशें और सत्ता के भीतर सत्ता — कहीं यह जनता के भरोसे से खिलवाड़ तो नहीं?




