– “जब न्याय की राह में सत्ता की दीवार खड़ी हो जाए, तो बेटियां सरपट नहीं दौड़तीं… तड़पती हैं!”
– जहाँ महिला पुलिस कप्तान वहां न्याय को तड़प रहीं गरीब बेटी दीक्षा शाक्य
शरद कटियार
फर्रुखाबाद। एक 14 साल की मासूम बच्ची, जिसे अभी किताबों से दोस्ती करनी थी, खेल के मैदान में हँसना था, वो आज ज़िंदगी और मौत की जंग अस्पताल में लड़ रही है। नाम है दीक्षा शाक्य। पिता राम सिंह शाक्य और मां सीमा देवी की आंखों से आंसू थम नहीं रहे – और ज़िम्मेदार तंत्र आज भी मौन है।
ये वारदात 15 जुलाई को कोतवाली मोहम्मदाबाद क्षेत्र के गांव पट्टी प्रदुमन में हुई। दीक्षा अपनी मां, बहन और पिता के साथ खेत में मूंगफली की फसल देखने गई थी – तभी इंसानियत को तार-तार करने वाले भेड़िए वहां पहले से घात लगाकर बैठे थे।जो दो दिन पूर्व भी प्रयास कर चुके थे।
पिपरगांव निवासी दबंग – मानवेंद्र यादव पुत्र टार्जन यादव, अवनीश यादव पुत्र अभय सिंह और संतोष यादव पुत्र फेरीलाल – ने पहले जानवरों को खेत में छोड़ा, फिर मौका देख मासूम दीक्षा को खींचकर खेत के पास के बाग में ले गए।
उनके हाथों में सरिया और धारदार हथियार थे। जब परिवार ने विरोध किया, तो मां-पिता को भी बेरहमी से पीटा गया। दीक्षा पर बर्बरता की सारी हदें पार कर दी गईं – उसके सिर में डेढ़ इंच गहरा और साढ़े 5 इंच लंबा जख्म कर दिया गया।
“चीखती रही दीक्षा, तड़पते रहे मां-बाप – पर पुलिस ने सुनी नहीं फरियाद”
घटना के बाद दीक्षा को डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल लाया गया। हालत बिगड़ती गई, तो तीसरे दिन लखनऊ रेफर कर दिया गया। आज भी वो जिंदगी के लिए जूझ रही है।
पुलिस की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखिए – पीड़ित परिवार ने जब मोहम्मदाबाद कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करवाने की कोशिश की, तो साढ़े तीन घंटे तक बैठाए रखा, उल्टे उन्हें धमकाकर भगा दिया गया।
बाद में जब ज्यादा हंगामा हुआ , तो महज छोटी धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। आज तक न कोई गिरफ्तारी हुई, न कोई बयान।
“क्या सत्ता के रसूख के आगे दम तोड़ रही है न्याय की आवाज?”
पीड़ित परिवार ने बताया कि मुख्य आरोपी मानवेंद्र यादव भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ दिखाई देता है, सोशल मीडिया पर उसकी नेताओं के साथ फोटो वायरल हैं। यही वजह है कि पुलिस हाथ बांधकर बैठी है – और दरिंदे खुलेआम गांव में घूम रहे हैं।
इस बीच समाजवादी पार्टी के नेता व डॉक्टर नवल किशोर शाक्य ने इंसानियत की मिसाल कायम की। उन्होंने न सिर्फ आर्थिक सहायता दी, बल्कि अपनी गाड़ी से पीड़िता को लखनऊ लाकर निजी खर्चे पर इलाज शुरू कराया।
पीड़ित माता पिता ने कहा – “ये किसी दल या सरकार की नहीं, एक बेटी की बात है। इंसाफ ना मिला, तो हर दरवाज़ा खटखटाएंगे – सीएम से लेकर महिला आयोग तक।”
दीक्षा की हालत इतनी नाजुक है कि कमरे में आहट से भी कांप उठती है मासूम।
डॉक्टरों के मुताबिक दीक्षा अभी जीवन रक्षक दवाओं पर है। उसकी मानसिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि कमरे में किसी की आहट भी उसे डरा देती है, और वह रोने लगती है।
“महिला एसपी के जिले में महिलाओं पर कहर, सवालों के घेरे में आ गईं पुलिस की कार्यप्रणाली।
सबसे शर्मनाक पहलू ये है कि ये सब वहां हो रहा जहाँ एक महिला आई पी एस अधिकारी पुलिस अधीक्षक – आरती सिंह की तैनाती है। जबकि उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार दोनों ही बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान चलाती हैं।
फर्रुखाबाद की दीक्षा आज पूरे प्रदेश से सवाल पूछ रही है –
“क्या मेरी चीखें सियासत के नारों से कमज़ोर हैं?”
“क्या रसूखदारों के आगे मेरी जान की कोई कीमत नहीं?”
“क्या मेरी मां की बेबसी और पिता की फरियाद भी चुनावी नारे बनकर रह जाएंगे?”
बच्ची का इलाज इंसानी फरिश्तों की देखरेख में जारी रहे
अगर अब भी चुप रहे – तो अगली दीक्षा शायद आपकी बेटी हो!