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Sunday, June 22, 2025

वर्दी की गरिमा बनाम साख पर दाग

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हरदोई जिले के पिहानी क्षेत्र से सामने आई घटना ने एक बार फिर वर्दीधारी कर्मियों की संवेदनहीनता और सत्ता के दुरुपयोग की कड़वी सच्चाई को उजागर कर दिया है। दो आरक्षियों द्वारा एक गरीब फल विक्रेता से जबरन खरबूजा खाना, पैसे मांगने पर गाली-गलौज करना और फिर प्रताड़ित करना न केवल कानून के रक्षक की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, बल्कि पूरे पुलिस विभाग की साख पर भी चोट करता है।

पिहानी कस्बे के अंबेडकर नगर मोहल्ला निवासी लखपति नामक व्यक्ति अपनी रोज़ी-रोटी चलाने के लिए ठेले पर खरबूजा बेचता है। गुरुवार को दो पुलिसकर्मी अनुज कुमार और अंकित कुमार उसके पास पहुंचे और बिना पैसे दिए खरबूजे खा गए। जब लखपति ने उनसे पैसे मांगे तो उसे गालियां दी गईं। अगले दिन शुक्रवार को जब वह पुनः ठेला लेकर पहुंचा तो फिर वही दोनों सिपाही आए और दुर्व्यवहार करते हुए उसका ठेला हटवा दिया।

इस अन्याय से पीड़ित लखपति शुक्रवार की शाम ठेला लेकर कोतवाली पहुंचा और रोते हुए अपनी व्यथा सुनाई। वहीं पर मौजूद लोगों ने उसका वीडियो बनाकर इंटरनेट मीडिया पर वायरल कर दिया। यह वीडियो इतना मार्मिक था कि सोशल मीडिया पर भारी प्रतिक्रियाएं आने लगीं।

जैसे ही मामला पुलिस अधीक्षक नीरज कुमार जादौन के संज्ञान में आया, उन्होंने तत्काल प्रभाव से सीओ हरियावां संतोष कुमार को जांच सौंपी। जांच में पुष्टि होने पर वे स्वयं पिहानी कोतवाली पहुंचे, लखपति को सम्मानपूर्वक कुर्सी पर बैठाया और उसे चाय पिलाई — यह केवल एक प्रतीकात्मक कार्य नहीं था, बल्कि यह उस संवेदनशीलता और जवाबदेही का प्रतीक था जिसकी उम्मीद हर नागरिक पुलिस से करता है।

दोनों आरोपी आरक्षियों को निलंबित कर उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर दी गई। यह तेज़ और सख्त कार्रवाई पूरे पुलिस विभाग के लिए एक सन्देश है कि अब अनुशासनहीनता और दमनकारी व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि वर्दी केवल अधिकार का प्रतीक नहीं है, बल्कि वह एक उत्तरदायित्व है। जनता की सेवा और सुरक्षा का संकल्प लेकर जो वर्दीधारी तैनात होते हैं, जब वे ही अपने पद का दुरुपयोग करते हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था का अपमान होता है।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पुलिस विभाग को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। आखिर क्यों ऐसे अधिकारी भर्ती हो रहे हैं जो न तो नैतिकता समझते हैं, न संवेदना? भर्ती प्रक्रिया में शारीरिक दक्षता और ज्ञान के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की भी जाँच होनी चाहिए।

इस पूरे प्रकरण में सोशल मीडिया की भूमिका अहम रही। यदि लखपति का वीडियो इंटरनेट पर वायरल न होता तो शायद यह मामला भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दबा रह जाता। जनता की सजगता और मीडिया की सक्रियता ने इस बार न्याय सुनिश्चित करने में सहयोग दिया।

यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि छोटे व्यापारी, खासकर सड़क किनारे अपने ठेले पर रोज़गार चलाने वाले नागरिक, अत्यंत असुरक्षित स्थिति में होते हैं। उन्हें अक्सर अधिकारियों की दबंगई का सामना करना पड़ता है। ऐसे में हमें एक ऐसा तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है जिसमें वे अपनी बात सुरक्षित रूप से रख सकें और उन पर कोई कार्रवाई स्वतः हो।

पुलिस अधीक्षक नीरज कुमार जादौन द्वारा की गई कार्रवाई प्रशंसनीय है। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया है कि पुलिस बल में अनुशासन सर्वोपरि है और जनता के साथ किसी प्रकार की बदसलूकी को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन यह एक isolated incident के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इस मामले को उदाहरण बनाकर एक व्यापक नीति तैयार की जानी चाहिए जिसमें पुलिस कर्मियों की नैतिक शिक्षा, व्यवहारिक प्रशिक्षण और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
राज्य सरकार को भी चाहिए कि ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई के लिए विशेष तंत्र स्थापित करे और साथ ही साथ, पीड़ितों को कानूनी सहायता और मुआवज़ा देने की व्यवस्था सुनिश्चित करे। साथ ही, यह भी ज़रूरी है कि जनता में यह विश्वास कायम रहे कि वे अगर अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे तो सिस्टम उनके साथ खड़ा होगा।

हरदोई के पिहानी का यह प्रकरण पुलिस व्यवस्था में सुधार के लिए एक अवसर है। यह याद रखना ज़रूरी है कि हर गरीब की आंखों में सपने होते हैं, और जब वे ठेले पर मेहनत कर जीवनयापन करते हैं, तो वे देश की अर्थव्यवस्था का भी हिस्सा होते हैं। उनके साथ अन्याय करके कोई भी वर्दीधारी कानून से ऊपर नहीं हो सकता। न्याय तब ही पूर्ण होता है जब वह सबसे कमजोर व्यक्ति को भी निर्भयता से मिल सके।

यह घटना भविष्य में पुलिस आचरण की दिशा तय करेगी — कि क्या वर्दी सेवा का प्रतीक बनेगी या दमन का। उम्मीद है, हरदोई की इस काली घटना के बाद एक उजला संदेश बाकी प्रदेश और देश की पुलिस व्यवस्था को मिलेगा।

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