2003 के चर्चित मुकदमे में गवाही के लिए पहुंचे वरिष्ठ अधिकारी, न्यायालय में हुई लंबी कार्यवाही
फर्रुखाबाद: आर्थिक अपराध शाखा के डीआईजी हृदेश कुमार (DIG Hridesh Kumar) ने शनिवार को अपर जिला जज एवं सत्र न्यायालय एफटीसी प्रथम में वर्ष 2003 में दर्ज दहेज हत्या के एक पुराने और चर्चित मुकदमे में अपने बयान दर्ज कराए। इस दौरान न्यायालय (court) कक्ष में दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की मौजूदगी में गवाही और जिरह की प्रक्रिया पूरी की गई।
मामले से जुड़ी जानकारी के अनुसार, कोतवाली फर्रुखाबाद में अपराध संख्या 522/2003 के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (पति या पति के रिश्तेदार द्वारा क्रूरता), 304बी (दहेज मृत्यु) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 (दहेज लेना-देना) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। आरोप है कि विवाह के बाद ससुराल पक्ष द्वारा लगातार दहेज की मांग की गई और प्रताड़ना के चलते महिला की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई।
इस मामले की विवेचना तत्कालीन सीओ सिटी हृदेश कुमार (वर्तमान में डीआईजी) ने की थी। विवेचना के दौरान उन्होंने घटना स्थल का निरीक्षण, गवाहों के बयान और साक्ष्यों का संकलन कर रिपोर्ट तैयार की थी। इसी क्रम में माननीय न्यायालय द्वारा वाद संख्या 193/2005, राज्य सरकार बनाम संजीव उर्फ राजू आदि में गवाही के लिए उन्हें साक्ष्य सम्मन जारी किया गया था।
निर्धारित तिथि पर डीआईजी हृदेश कुमार न्यायालय में पेश हुए और अपने बयान दर्ज कराए। न्यायालय में उन्होंने विवेचना के दौरान किए गए कार्यों, एकत्र किए गए साक्ष्यों और गवाहों के बयान के बारे में विस्तार से बताया। गवाही के बाद बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने उनसे कई प्रश्न पूछे, जिनका उन्होंने क्रमवार उत्तर दिया।
इस मुकदमे की सुनवाई लंबे समय से जारी है और अब महत्वपूर्ण गवाहों के बयान पूरे होने के बाद मामले के अंतिम चरण में पहुंचने की संभावना है। कानूनी जानकारों के अनुसार, दहेज हत्या के मामलों में साक्ष्य और विवेचना अधिकारी की गवाही बेहद अहम होती है, क्योंकि यह पूरे केस की दिशा तय कर सकती है।