– विधायक की नाराजगी बनी रोड़ा, शासन-प्रशासन बना मूकदर्शक
फर्रुखाबाद/कमालगंज। कमालगंज नगर पंचायत की जनता ने 2023 के निकाय चुनावों में सत्ता समर्थित प्रत्याशी को नकारते हुए दलित महिला उम्मीदवार रामबेटी शंखवार को नगर पंचायत अध्यक्ष चुना। लेकिन जीत के डेढ़ साल बाद भी वह आज तक विकास कार्यों में एक भी स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। कारण—स्थानीय भाजपा विधायक की खुली नाराजगी और प्रशासनिक सहयोग की घोर कमी।
कमालगंज की जनता ने विधायक के प्रत्याशी को नकार कर निर्दलीय दलित महिला को चुना, जो जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य करना चाहती थीं। लेकिन जीत के तुरंत बाद से ही उन पर दबाव, उपेक्षा और कार्य में अड़ंगा डालने का सिलसिला शुरू हो गया।
रामबेटी शंखवार के पति के.के. शंखवार, जो एक शिक्षक थे, उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई। परिवारजनों और स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह लगातार प्रशासनिक दबाव, घुटन और मानसिक तनाव का ही परिणाम था।
यह प्रश्न उठता है—क्या जनप्रतिनिधियों की ईमानदारी उनके लिए सजा बन चुकी है?
नगर पंचायत में ठेके, निर्माण, सफाई, जल निकासी, लाइटिंग जैसे विकास कार्यों में कथित तौर पर कुछ विशेष ठेकेदारों और अधिकारियों का गठजोड़ सक्रिय है। यहां कार्य तभी होता है जब “कमीशन” पहले सेट हो जाए।
रामबेटी शंखवार इस कमीशनखोरी की नीति के खिलाफ खड़ी रहीं, नतीजा—बजट रोका गया, टेंडर अटकाए गए, प्रस्ताव खारिज किए गए।
यह घटना न केवल दलित महिला प्रतिनिधि की उपेक्षा है, बल्कि एक लोकतांत्रिक जनादेश के अपमान का जीवंत उदाहरण भी है।
क्या निर्वाचित अध्यक्ष को केवल कठपुतली बनाकर रखा जाएगा?
क्या महिला, वो भी दलित वर्ग की होने के कारण उसे विकास कार्य करने का अधिकार नहीं?
और सबसे अहम, विधायक आखिर कौन से संवैधानिक अधिकार से निर्वाचित अध्यक्ष के कार्य में बाधा डालते हैं?