🔴 मिर्जापुर जिले में ही 129 उपनिरीक्षकों का हुआ तबादला, फिर भी कई अब तक उसी थाने पर तैनात
🔴 विंध्यवासिनी मंडल और कानपुर मंडल में भी आदेशों की अनदेखी, अपराध नियंत्रण पर गहराया सवाल
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पुलिस महकमे की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवाल खड़े हो रहे हैं। पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा जारी तबादला आदेशों के बावजूद कई जनपदों में दारोगा व थानेदार पुराने थानों पर ही जमे हुए हैं। इस सबसे नए डीजीपी के निर्देशों की सरेआम अनदेखी हो रही है।
📍 मिर्जापुर में 129 उपनिरीक्षकों का तबादला — फिर भी कई पुराने थानों पर कायम
मिर्जापुर जिले में विंध्यवासिनी मंडल के पुलिस महानिरीक्षक के निर्देश पर 129 उपनिरीक्षकों का स्थानांतरण आदेश जारी किया गया था। लेकिन तबादले के दो महीने बाद भी दर्जनों दारोगा अब तक अपनी पुरानी पोस्टिंग पर डटे हुए हैं।
👉 उदाहरण के तौर पर:
विवादित दारोगा राजकुमार पांडेय (विंध्याचल): स्थानांतरण आदेश के बावजूद अब तक वहीं तैनात।
प्रभारी निरीक्षक संतनगर जितेंद्र सरोज: तबादला होने के बावजूद जिले से नहीं हटे।
📌 ऐसा ही हाल कानपुर मंडल में भी कानपुर मंडल में भी उपनिरीक्षकों के तबादले के बाद स्थानीय दबाव, राजनीतिक हस्तक्षेप और विभागीय ढिलाई के चलते कई अधिकारी अपनी पुरानी पोस्ट पर बने हुए हैं।
लखनऊ मुख्यालय से भेजे गए दिशा-निर्देशों के अनुसार, किसी भी पुलिस अधिकारी को तीन वर्ष से अधिक समय तक एक ही स्थान पर नहीं रखा जाना है।
लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि कई दारोगा 4 से 6 वर्षों तक एक ही थाने में टिके हैं। नतीजा — स्थानीय अपराधियों से सांठगांठ, कार्रवाई में पक्षपात और अपराध दर में बढ़ोतरी।
सूत्रों के अनुसार, कुछ स्थानांतरण कार्मिकों की व्यक्तिगत अपील, चिकित्सकीय कारण या विभागीय ‘एडजस्टमेंट’ के नाम पर रोके गए हैं। हालांकि अधिकारियों के अनुसार, “यदि तबादले आदेश के बावजूद कोई अधिकारी अपने पद पर जमा है, तो यह कदाचार की श्रेणी में आता है।”
पत्रकार संघों, सामाजिक संगठनों और सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों ने इस पर डीजीपी से सीधा हस्तक्षेप की मांग की है।
वे चाहते हैं कि तबादला आदेशों को एक सप्ताह के भीतर हर हाल में लागू कराया जाए, वरना पुलिस की साख और अपराध नियंत्रण दोनों प्रभावित होते रहेंगे।